पुराने और नए धर्म नियम | Purane Aur Naye Dharm Niyam
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
983
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ दिया । शर ज्रव उन्हों ने उन को निकाठा तब उस ने
कहा श्रपना आस लेकर भाग जा पीछे की ओर न
ताकना शौर तराई भर में न ठदरना पहाड़ पर सांग
मे जाना नहीं हो हू भसस हो जाएगा । लूत ने उस से
कहा हैं प्रसु ऐसा न कर । सुन तेरे दास पर तेरी झनु-
ग्रह की दृष्टि हुई है शार दू ने इस में बढ़ी छुपा दिखाई
कि सेरे प्राण को बचाया है पर से पहाड़ पर भाग नहीं
सकता कही ऐसा न हो कि यह विपत्ति झुक पर आा
० पढ़ें शोर में मर जाऊं । देख बह नगर ऐसा निकट है
कि मैं बहाँ साग सकता हूँ और वह छोटा भी है मुझे
धही भाय लाने दे क्योंकि वह छोटा हो है घौर इस
१ अकार मेरे आए की रहा हे । उस ने रस से कहा सुन
में ने इस विपय में भी तेरी विचती शंगीकार किई हे
कि जिस नगर की चर्चा तू ने किई है उस को मैं न
२९ उद्दहूंगा। फु्ती करके घहां भाग ला क््येकि जब लों
हू वहां न पहुंचे तब्र छों सैं झुद न कर सकूंगा। इसी
२६ कारश उस नगर का नाम शाझरू* पढ़ा। लूत क्के
सेश्रर् के निकट पहुंचते ही सूय्य प्रथिवी पर उदय
९४ हुआ | तब यहेवा ने अपनी ओर से सदामु धर
अमारा पर आकाश से गल्धक शोर श्राग दरसाईे,
११ और उन लगरों और उस संपूर्ण तराई को नगरों के
सब निवासियों शार भूमि की सारी उपज समेत बढद
२९ दिशा । लूत की ख्री ने उस के पीछे से दृष्टि फेरके ताका
२७ श्रौर बह ठोन का सभा हो गई। सार के इुबाहीम
उठकर उस स्थान के गया नहां घह यहवा के सन्सुख
१५ खड़ा रहा था, और सदास और धसोरा शोर उस
तराई के सारे देश की शार ताककर क्या देखा कि उस
९९ देश में से भट्टी का सा धूआं उठ रहा है। जब परसेरचर
बेउस तराष्र के नगरों का जिन में लूत रहता था
उढर कर नाश करना चाहा तब उस ने इब्राह्ीम की
सुधि करके लूत को हो! उठटदे से बचा लिया ॥
३०. लूत जो साझर् में रहते डरता था सो अपनी दोनं
बेटियों समेत्र उस स्थान को छे्कर पहाड़ पर चढ़
गया चार वहां की एक शुफा में वह और उस की देनों
३१ बेटियां रहने ठगी । तब बढ़ी बेटी ने छेठटी से कहा
हमारा पिता बूढ़ा दै शार इथिवी* झर में कोई ऐसा
पुरुष नहीं जो संसार की रीति के धनुसार हमारे पास
देर झाए। सो झा इम थपने पिला को दाखमधु पिछाकर
उस के साथ सोएं शरीर इसी रोहि श्रपने पिता के द्वारा
३३ वंश रतपप्न करें । सा रन्दों ने उसी दिन रात के समय
(९) अर्वोत्, छोटा 1 (श] था. देश +
शपने पित्ता को दाखमधु पिछाया तब बढ़ी बेटी जाकर
कट रिय झलक
8 झष्याय | उत्पत्ति 1
झपने पिता के पास सोई शौार उस को न ता उस के
सोने के समय न उस के उठने के समय कुद सी चेत
था । दूसरे दिन बड़ी ने छोटीं से कहा सुव कछ रात
को मैं अपने पिता के साथ सेई सा श्राज मी रात को
इस उस को दाखमधु पिछाएं तब तू जाकर उस के
साथ सा कि हम अपने पिता के द्वारा बंश उत्पन्न करें ।
सो रनों ने उस दिन भी रात के समय झपने पिता को
दाखमधु पिठाया धार छोटी बेटी जाकर उस के पास
लाई पर उस को उस के भी सोने शैर उठने के समय
चेत न था । इसी प्रकार से लूत की दोनों बेटियां झपने
पिता से ग्ंवती हुईं । श्रोर बढ़ी एक एग्र जनी शौर
इस का नाम सोझाब, * रक्त वह मेशझाव, नाम जाति
का जो झान लो है मूखपुरुष हुआ | श्रौर छोटी भी
एक पुत्र जनी शर उस का नाम बेनस्मी* रक््खा वह
झम्मोानुवंशियें का जो झान छों है सूखपुरुप हुझा ॥
(इसूहाक् को उत्पत्ति का घग )
इब्रादीम वहां से कुच कर
रे, फिः नानी
शौर शूरू के बीच में ढहरा श्रौर गरार् नगर में परदेशी
हेकर रहने ठगा । श्र इबाहीम झपनी स्री सारा के
विषय में कहने लगा कि बह मेरी बहिन है से गरार् के
राजा अबीमेश्षेकू ने दूत सेजकर सारा को इुलेवं
लिया । रात को परमेश्वर ने खप्म में अबीमेलेक् के
पास झाकर कहा सुन जिस छी को तू ने रख लिया है
उस के कारण तू सुझा सा हैं क्योकि वह सुद्दागिन है ।
अबीमेक्षेक तो कस के-पास न गया था सा उस ने
कहा हे प्रभु क्या तू निददोष जाति का भी घात करेगा ।
क्या रसी ने मुक से नहीं कहा कि वह मेरी वहिन है
झोर उस ख्री ने सी शाप कहा कि वह मेरा माई है मैं ने
तो श्रपने मन की खराई श्र भ्रपने व्यवहार की सधाई
सेरे यह काम किया । परमेश्वर वे उस से ख में
कहा हां मे भी जानता हूँ कि झपने मन की खराई से
चूने यह काम किया है शोर मैं ने तुझे रोक भी
रक््खा कि तू मेरे विरुद्ध पाप न करे इसी कारण मैं ने
हुक को उसे छूने नहीं दिया । से श्र उस पुरुष की
ख्री को उसे फेर दे क्योंकि वह नवी है शार तेरे लिये
प्राथना करेगा शैर तू जीता रहेगा पर यदि तू उस को
न फेर दे तो जान रख कि तू झोर तेरे जितने छोग हैं
सब निश्चय मर जाएंगे । विद्वान को थबीमेलेक ने तड़के
दठ कर अपने सब कर्मचारियों को दुढबाकर ये सब
में आपने इयेलिये। की निर्दोपता से ।
वे
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३७
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पं
नम लग
(१) अयोंत पिता का बीस्बे । (९) अयतु मेरे वुदुष्बो का बेठा+ (३) मूक:
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