वेदांत छंदावली | VEDATNT CHANDAWALI
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राज्न-चाणी
(५)
जब है' श्रकाशक सच्च मम, तो क्यों न होडें प्रकाश मैं !
जब चिश्वभरकों साखता, तो आप भी हाँ भाख मैं ॥
ज्यों सीपमें चाँदी सपा, ससभूमिमें पानी यथा ।
अज्ञानसे कठपा हुआ , यह विश्व सुभमें है तथा ॥
(द्)
ज्यों ग्त्तिकासे घट बने, फिर सत्तिका्मे होय लय 1
उठतीं यथा जलसे तरंगें, होयेँ फिर जलमें विछय ॥
कंकण, कटक बनते कनकसे लय कनकमें हों यथा 1
सुमसे निकलकर विश्व यह सुफमाँहि लय होता तथा ॥
(७9)
होवे प्रलय इस विश्वका, मुकको न कुछ भी चास है 1
ज्रह्मादिं सबका नाश हो, मेरा न होता नाश है ॥
मैं सत्य हूँ, मैं ज्ञान हा, में घ्रह्म देव अनन्त हूँ ।
केसे भला दो भय मुभ्हे, निर्भय सदा निश्चिन्त हूँ ॥
के
आश्ययं है, आश्यय हे, मैं देदवाछा हू यद्पि ।
आता न जाता हुँ कहीं, भूमा अचल हु मैं तद्पि ॥
सुन प्राज्ञ वाणी चित्त दे, निजरूपमें अब जाग जा
भोला ! घ्रमादी मत बने, भव-जेलसे उठ भाग जा ॥
श३
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