वेदांत छंदावली | VEDATNT CHANDAWALI

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VEDATNT CHANDAWALI  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राज्न-चाणी (५) जब है' श्रकाशक सच्च मम, तो क्यों न होडें प्रकाश मैं ! जब चिश्वभरकों साखता, तो आप भी हाँ भाख मैं ॥ ज्यों सीपमें चाँदी सपा, ससभूमिमें पानी यथा । अज्ञानसे कठपा हुआ , यह विश्व सुभमें है तथा ॥ (द्) ज्यों ग्त्तिकासे घट बने, फिर सत्तिका्मे होय लय 1 उठतीं यथा जलसे तरंगें, होयेँ फिर जलमें विछय ॥ कंकण, कटक बनते कनकसे लय कनकमें हों यथा 1 सुमसे निकलकर विश्व यह सुफमाँहि लय होता तथा ॥ (७9) होवे प्रलय इस विश्वका, मुकको न कुछ भी चास है 1 ज्रह्मादिं सबका नाश हो, मेरा न होता नाश है ॥ मैं सत्य हूँ, मैं ज्ञान हा, में घ्रह्म देव अनन्त हूँ । केसे भला दो भय मुभ्हे, निर्भय सदा निश्चिन्त हूँ ॥ के आश्ययं है, आश्यय हे, मैं देदवाछा हू यद्पि । आता न जाता हुँ कहीं, भूमा अचल हु मैं तद्पि ॥ सुन प्राज्ञ वाणी चित्त दे, निजरूपमें अब जाग जा भोला ! घ्रमादी मत बने, भव-जेलसे उठ भाग जा ॥ श३




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