शैल-गाथा | Shail-Gatha

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Shail-Gatha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विशाल :देवूं श्छु की एक: भयावनी:उल्लासंपूर्ण भवनों से उन्हें . केस्पायम्ान करने ठग मचिंर- परिचित: वृक्ष भी. उस. इवेत आवरण से. विशाल 'देव-से. खड़े चुपचाप, उनकी - “ओर: एकटक .देखते-से, जान' पड़ते थे। “वे. ही ' मानो: उस “अलौकिक: शान्ति मं “: विघ्नुकर्ता अपरंघी हों व “ तप मनन: क संदी ' के उस /पा[र, की उने: घाटियों,' पर्वतमालाओं: और उनके: बीच 'अंटके : हुए वादलों के ऊपर सारी. उत्तर-दिशा..के पुरे क्षितिजःपर 'विज्ञाल, दवेत 'स्फ़टिक : की. दीवांर-सी. हिमालय की श्रेणी, खड़ी थी एक ओर वह ऊँची हिमेमांला: और : दूसरी: ओर, यह हिम-पर्वत उस विशाल, नदी के दूर :व्ें दो किनारों 2की भाँति होःगए थे बीच, में: आते वाली छोटी-छोटी “पहाड़ियाँ -इंतती,. बड़ी घाटी: में. अपना: विशोलपन .खो कर नदी के: हरे. और .तीले .कंकड़-पत्थरोंससी' लगती थी. के. पानी; की .फ़ेचिल, तरंगों की: भाँति: दिखंलाई:दे'रहे थे। हिमालय की श्रेणी के. बीत, एंक सर्व से: 'बड़ीं चोंटी' उस :कोसों: फैली. नदी के” ठीक किनारे: खड़ी दिखलाई' 'दे रही थी । ...:. दर रेडिचदम्पति ; हिंममालां :की' उस अदभुत छटां को देखते रह गए । हिंमें ' का: रशिरना बन्द हो गया थी । बादलों के:टेकड़े यंत्रज्तंत्र सारे आकाश में: छिटकें,. हुए: जल्दी-जहदी भांग रहे :थे.। उत्तर, की ओर: उस :हिम: माला के एक . कोने. पर आकाश विलकल स्वल्छन्ो,गधा:था.।उज्ज्वल,नीलें: आकाश“ का: एंकेप्रान्ते “सुंय॑ की किरंगों से: सारे हिंमारूय:की श्रेणी की तौन्न मंकाद: से: चमक “रहो थी 1. :सारावातारवरंण सरध्या के पीते प्रकादा, में घुर्ध-सा हो गया-थो; जो/हिमालय की, “इस श्रेणी पर ऐसा. जान पड़ता था, . मानो, दिन. का-कुछ भाग छूट करा. रहे गया 'ओवरसियंर ने :कही---“यंहं बड़ी ऊँची. श्रेणी केदारनाथ की, है, और: टूर इस ैसगिक:दुदय को देख: कर :रेडिच-दंम्पतिं की. भी इच्छा हुई कि एके बार ““इन-पंबतों और, नदियों को नहीं; तो; इनके निर्माणकर्ता को तो असिरवन्दना कर दी ०




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