बाँकीदास ग्रन्थावली [भाग 2] | Bankidas Granthavali [Part 2]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रच.)
बनी २६ी ते अवश्य ही एक टिन हाथी संवार हूँगा श्रार कड़े
मोती पहुनूगा । इतना कहूंकर ठाऊुर से चभा भाँगकर अपने
भाभा के साथ नॉकीदासजी गाँव को लौट आएं । हानचार
कवि को यह भ्रतिज्ञा कैली उत्तभ रीति से उसके जीन में पूरी
हुई सो बॉकीदासजी श्रार महाराज सानसिंहगी के चरित्र मे
स्पष्ट हो है। ४+ समय कबिराजा बॉकीदासजी हाथी-
सवार जाधपुर में होकर जा <हे थे उसी समय उफ ठाउर रास्ते
में भिरो । तब अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण होने को उक्त ठाकुर को
कारण मानकर कुत्ता का एक सारठा कहा । यह सोारठा
प्राप्त लें है । +
उक्त जाशसिजी ने बाँकोदासजी का एक दूसरा भाख्यान
लिख भेजा है। वद्द इस तरदद है कि कबिराजा बाँकोदासजी
ऑ्रपने गाँव जाते तब खाँड५ गाँव भी जाया करते क्योकि उसमे
लाधूसिद सेासंकी निय <दता था जा श्पने झातिथ्य-सटकार
के लिये विख्यात था । उसका यह दृढ़ भ्ण था कि
उसके यहाँ था गाँव में कोई भी पुरुष अतिथि आ जाता
ते उसका बिना अआतिथ्य-सट्कार के वह जाने दो
चंद पता था ।. बॉकीदासजी का इससी धड़ी स्नेह था।
के स्व० ठा० भू सिंहजी के “विविध संभद”” सें रायपुर के उाऊकुर
अजुनर्सिदजी को कृतनज्ञता का दादा नाकोदासजी ने कहा था सो
पू० ११४ पर देखें । तथा “बा० दा० अं०”” प्रथम भाग की अूमिका
पू« १०, १५ पर स्थान देखें । हु० ना० ॥
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