हिन्दी के तीन प्रमुख नाट्यकार | Hindi Ke Teen Pramukh Natyakar

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Hindi Ke Teen Pramukh Natyakar by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasadभारतेन्दु हरिचन्द्र - Bharatendru Harichandra

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भारतेन्दु हरिचन्द्र - Bharatendru Harichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतेन्दु बाबू का नाव्य-सादित्य ८७ पच छल 'डेफिलोलिलिफेफिकिलाकलाकफेफेलियायशालिकिइयाकफरकयाथ लो ककाशलसलावमाचननलचमकयकामायालायककानकालकयिजफीपिकयाकियिगनियसाग्शककालकशकलकानिककनिना काका न का अवरोघक हम लोगों की छल पर परा मात्र दै” दूर करना चाइत्त हैं । वास्तव में लेलक इस उद्देश्य की ति करने में समर्थ हुद्ा है । नीलदेवी एक वीर पत्नी ही. नहीं है स्वतः एक वीर रमण्दी भी है। उलके चरित्र का विकास चाटक लेखक श्रंतिम श्रद्धभाग में करता है । अब्दुरशरीफ्खाँ एक विदेशी 'झाकभणुकारी है । वह उस समय के मुस्लिम 'झाक्रमणकारियों का प्रतीक साना जा सकता है । उसमें, उस के सेनिको में धद्दी उत्साह, चद्दी नीति तथा युद्ध प्रणाली, चट्टी जेसे तैसे चिनय प्राप्त करने की भावना धर भारत को इस्टम के भँड के नीचे लाने का भाव है । राष्ट्रीयण का समर्थन करते हुए भी यह तो मानना ही पढ़ेगा कि इस प्रकार का भाव मध्यम युग के उस झघकार मय चाताचरण में था झवश्य । उस समय दिदू जाति की सीधी सरल नीति, वीरता, साइस '्औौर उत्सादद के होते हुए भी उसके लिये 'भ्रष्टित- कारी थी । वे नीति श्र न्याय की ुदाई ऐसे हुए पराजय पर पराज्ञय भेजते नाते थे क्तु कुटिल नीति का घवलवन बद्दी करते थे । धीरे-घीरे इस नीति की प्रतिक्रिया प्रारंभ हुई । इसी प्रतिक्रिप का मास पे नीलेवी के चरित्र में मिलता हैं । उसमें प्रतिह्िता की सावना नहीं थी। चह अन्थाय का घोर प्रतिकार उन्द्ी सिक्कों में ज्लुकाना चाइती थी जिनमें उसे प्राप्त हुआ था | चद्द बेबस थी, लाचार थी, शक्ति दीन थी । ५६ थद जानती थी कि कुमार केवल ग्राण दे सकता है विजय प्राप्त नदी कर सकता | च्द देख चुकी थी कि उसका पति नीति श्र न्याय युद्ध के नाम पर मारा ना चुका है। घर्म-परिवर्तन के निमित्त उसके साथ घन्याय किया गया था । चद्द वीर नारी कया करती ? उस समय की बहु प्रच- लित कुटिल्र नीति के अघलवन करने के सिवाय उसके पास धर क्या उपाय था £ पद़िले भी वह पति को शब्दुरशरीफ्खी से और उसकी नीति से सचेत किया करती थी, फिएु उसकी सम्मति की थवदेलना की




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