हिन्दी के तीन प्रमुख नाट्यकार | Hindi Ke Teen Pramukh Natyakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
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भारतेन्दु हरिचन्द्र - Bharatendru Harichandra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतेन्दु बाबू का नाव्य-सादित्य ८७
पच छल 'डेफिलोलिलिफेफिकिलाकलाकफेफेलियायशालिकिइयाकफरकयाथ लो ककाशलसलावमाचननलचमकयकामायालायककानकालकयिजफीपिकयाकियिगनियसाग्शककालकशकलकानिककनिना काका न
का अवरोघक हम लोगों की छल पर परा मात्र दै” दूर करना चाइत्त
हैं । वास्तव में लेलक इस उद्देश्य की ति करने में समर्थ हुद्ा है ।
नीलदेवी एक वीर पत्नी ही. नहीं है स्वतः एक वीर रमण्दी भी
है। उलके चरित्र का विकास चाटक लेखक श्रंतिम श्रद्धभाग में करता
है । अब्दुरशरीफ्खाँ एक विदेशी 'झाकभणुकारी है । वह उस समय के
मुस्लिम 'झाक्रमणकारियों का प्रतीक साना जा सकता है । उसमें, उस के
सेनिको में धद्दी उत्साह, चद्दी नीति तथा युद्ध प्रणाली, चट्टी जेसे तैसे
चिनय प्राप्त करने की भावना धर भारत को इस्टम के भँड के
नीचे लाने का भाव है । राष्ट्रीयण का समर्थन करते हुए भी यह तो
मानना ही पढ़ेगा कि इस प्रकार का भाव मध्यम युग के उस झघकार
मय चाताचरण में था झवश्य । उस समय दिदू जाति की सीधी सरल
नीति, वीरता, साइस '्औौर उत्सादद के होते हुए भी उसके लिये 'भ्रष्टित-
कारी थी । वे नीति श्र न्याय की ुदाई ऐसे हुए पराजय पर पराज्ञय
भेजते नाते थे क्तु कुटिल नीति का घवलवन बद्दी करते थे । धीरे-घीरे
इस नीति की प्रतिक्रिया प्रारंभ हुई । इसी प्रतिक्रिप का मास पे
नीलेवी के चरित्र में मिलता हैं । उसमें प्रतिह्िता की सावना नहीं थी।
चह अन्थाय का घोर प्रतिकार उन्द्ी सिक्कों में ज्लुकाना चाइती थी जिनमें
उसे प्राप्त हुआ था | चद्द बेबस थी, लाचार थी, शक्ति दीन थी । ५६
थद जानती थी कि कुमार केवल ग्राण दे सकता है विजय प्राप्त नदी कर
सकता | च्द देख चुकी थी कि उसका पति नीति श्र न्याय युद्ध के
नाम पर मारा ना चुका है। घर्म-परिवर्तन के निमित्त उसके साथ घन्याय
किया गया था । चद्द वीर नारी कया करती ? उस समय की बहु प्रच-
लित कुटिल्र नीति के अघलवन करने के सिवाय उसके पास धर क्या
उपाय था £ पद़िले भी वह पति को शब्दुरशरीफ्खी से और उसकी
नीति से सचेत किया करती थी, फिएु उसकी सम्मति की थवदेलना की
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