साकेत दर्शन | Saaket Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२--प्रबंध काव्यव और भावुकता कद्दा जाता है कि साकेत में प्रवघ काव्य के श्रवयवों के ठोक परिणाम की व्यवस्था नददीं मिलती । इतिवृत्ति दै तो प्राचीन । दशरथ झयोध्या के सम्राट हैं, सखी हैं, पुत्र राम का राज्यामिषेक कर देना चाहते हैं-- “पुत्र रूपी चार फल पाए यहीं, भूप को व और कुछ पाना नहीं । बस यही संकल्प पूरा एक हो; शीघ्र ही श्रीरास का अभिषेक हो !” केकेयी भरत के प्रेम में मथरा द्वारा उकसाई जाकर श्रभिष्रेक का विरोध ही नहीं करती, वरन्‌ चौदश वर्ष का निष्काशन भी करा देती है । दशरथ को मृत्यु होती हे श्रौर राम सीता व लक्ष्मण के साथ वन चले जाते हैं । चित्रकूट प्रसंग में भरत को लोटाकर दक्षिण की श्रोर प्रयाण करते ईं। श्रनेक राक्षसों का संद्ार कर लका की श्रोर वढते हूँ-सीता की खोज में सहायक हनुमान श्च्छ- वानर हूं । मेघनाद कुमकण के उपरान्त रावण का वध होता दे श्रौर राम सकुशल लौट श्राते ई | एक कथा तो यद्द है । १. प्रधान वस्तु--दूसरी कथा उ्मिला लद्यमण के जीवन से सम्बद्ध है | विवाह के उपरान्त बहुत कम समय तक सयोग पशु जीवन, तदन्तर दौर्घ वियोग, प्रिय का श्रर्मिशि रमरण श्रौर अन्त में श्रानंदमय मिलन । जो श्रालोचक राम-कथा-बृत्त को प्रधानता देते हैं उन्हें कमी खटकती है लेकिन में बतला चुका हे यदद प्रसंग गौण दे | मुख्य श्रघिकारिक कथा डर्मिला लदमण से सम्बद्ध है। जो प्रथम सर्ग से लेकर द्वादश सग॑ तक श्रविच्छिनन है । लदमण के न रहने पर भी जब प्रत्येक पाच का; कवि का, यहाँ तक कि नागरिकों का ध्यान उर्मिला पर दो केन्द्रित रदता है तो इसका तात्पर्य हुश्रा वार-वार उसी का जीवन सामने स्याता है श्रौर जब रवय राम उसकी महत्ता रपष्ट कर देते हे तो सांफेतिक रूप से उसी के जीवन की प्रधानता सिद्ध होती है |




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