आचारांग सूत्र [खंड - 1] | Aacharang Sutra [Khand - 1]
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हद
स्ादि में श्रीसि रखते याले सथा स्त्रियों में श्रस्यन्त श्रासक्ति वाले उन
लोगी को ऐसा ही दिखाई देता है कि यहां कोई तप नहीं हैं, दम
नहीं है धीरे कोई नियम नहीं है । जीवन श्र लोगों की कामना
याले ये मनुष्य चाहे को चोलते हैं घोर दस प्रकार दिताहित से
थ्थ
शुन्य यन जाति हैं । [ ७६ |
ऐसे मनुष्य खियों से हारे हुए होते हैं 1 थे तो ऐसा ही
ही मानते हैं कि खियों ही सुख की खान हैं । चास्तव में तो ये दुग्ख,
सार, सृस्यु, नरक घोर नीच गति (पशु) का कारण हैं 1 [ ८४ 3
. कॉम भागों के ही विचार में सन, घचन घोर काया से मा
पाले थे मनुष्य धपने पास जा कु घन होता है, उससें ध्ायन्त
साफ रहते हैं धर ट्रेड (सचुप्य) चोपाये (पथुश या. किसी सी
जीप का बथ या शायालन करके भी उसको बढ़ाना चाहते हैं । [सच
_. परन्तु मनुष्य का जीवन शर्यन्त शरप है । जय - शायुप्य भत्यु से
सिर जाता हैं, सो पंख, कान थादि इन्ट्रियों फा ,यल कस, होने पर.
मनृष्य सूद हो जाता है । उस समय भपने कुटम्मी भी जिनके साथ
पं सपुत समय से रफसा है उसका. सिरस्कार मरते हैं । घद्धावर
_ में इसी, सेल, रतिविलास योर धगार धरणा नहीं . सालुम ' होता है
पिन सार यानी पानी की सरहद यह .सलाहे हैं; । उस समय से
... सियिसन मनुष्य, पी सोन से. रशा नहीं करे: सफते 1 शिन, माला
दिया में भगत में -लसका पालन-पोषण किया था चोर दा होने.
पर सह उनकी गण 'फरतो था । ये भी उसकी नहीं : या
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