अपना रास्ता लो बाबा | Apana Rasta Lo Baba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने करीब बुलाया डाक्टर ने तुमसे भी बताया था न कि कछ नहीं है। वहां तो। आपने भी तो सुना था। बस यही सुनना चाहता था । बाबा ने देवनाथ की पीठ ठोंकी जा अब खा के सो जा । कल तड़के ही चला जाऊंगा । नहीं कल केसे? देवनाथ ने कहा । नहीं अब जाऊंगा कल। जा जा के खा। बाबा ने उन्हें ठेलकर उठाया।. वे धीरे-धीरे खाने वाले कमरे तक आये। आशा बच्चों को सुना रही थी-बुढ़ुऊ की खुराक । उनका चपर-चपर खाने का ढंग । बोलते केसे हैं । वे खड़े रहे। उन्हें भूख नहीं थी । अचानक उनकी नजरें गगरे पर चली गयीं । उनकी आंखें भीख गयीं । जंगले के पास चौखट पर बैठ गये। आंखों के आगे अपना गांव उभर आया। वह बगीचा वह होला पाती । वह चलवा आमों की लूट। सिंघाड़े चुराना और पोखर में भौरे पकड़ना। आज कितने साल हो गये। सारा कुछ हवा में खो गया है। और बाबा जब 15




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