विमल विनोद | Vimal Vinod
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati
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मोक्षाकर - Mokshakar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(9)
'जंगढी हो! अरे सनातन धर्म तो छोड़ बैठे मगर लोक
रिवाजभी नहीं करते ! बड़ा . अफसोस है! ! आज
सारे लोगोंने जन्माहमी मनाई मगर तुम्हारे घर तो
मुंप दी नगाड़े होंगे !
चारदाचंद्र- वाहजी वाह! जरा सोचो तो सही मूंे नगाड़े
जन्माष्टमी मनानेत्राठोंके दे या कि हमारे! देखो!
हमने तो खूब मजेसे दिनमें भी ( कई कार ). खाया
और दुकानसे आकर भी रातकों ( दश बजे.) खाकर
चुके हैं! और कृष्णाह्मीवाले विचारे सारा दिन तो
भूखे मरे ( या किसीने .फलवार ) और आधी रातको
पत्थरोंके आगे मंदिरोमें माया फोड़ते फिरे.! फिर कहीं
खानेको और पीनेको पिला! तुम कोगेनि तो नकल
की, मगर हमारे तो असठ ही कुष्णका जन्म हुवा हे
प० चंदुलाल- तो क्या इसका नाम कृष्णदी रखोंगे? ( पासमें
खड़ी हुई “ माछती .” अपने बाप, शारदाचंद्रसे ) आपा-
नी.! मां कहती ,हैकि. रुप अष्मीफी
कृष्ण ही नाम रखना है. )
चारदाचंद्-(पुनीसे) चल! चल.! बैठ चुपकी देकि, हमारे घरमें
_ आजतक किसीनेभी ऐसे चोट्टे.जैसा नाम रखा है! जो
हम रखे! नाम रखनेका दिन तो आने दे! हमतों
इसका नाम “ विचवभरनाय ” रखेगे .! ( सुबह
होतेद्दी शारदाचंद्रके पोता हुआ यह सब साक स्वधिओं
में.मादम होगया, कहे सोने बधाई ( मवारक ) देनेको
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