विमल विनोद | Vimal Vinod

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दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati

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मोक्षाकर - Mokshakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(9) 'जंगढी हो! अरे सनातन धर्म तो छोड़ बैठे मगर लोक रिवाजभी नहीं करते ! बड़ा . अफसोस है! ! आज सारे लोगोंने जन्माहमी मनाई मगर तुम्हारे घर तो मुंप दी नगाड़े होंगे ! चारदाचंद्र- वाहजी वाह! जरा सोचो तो सही मूंे नगाड़े जन्माष्टमी मनानेत्राठोंके दे या कि हमारे! देखो! हमने तो खूब मजेसे दिनमें भी ( कई कार ). खाया और दुकानसे आकर भी रातकों ( दश बजे.) खाकर चुके हैं! और कृष्णाह्मीवाले विचारे सारा दिन तो भूखे मरे ( या किसीने .फलवार ) और आधी रातको पत्थरोंके आगे मंदिरोमें माया फोड़ते फिरे.! फिर कहीं खानेको और पीनेको पिला! तुम कोगेनि तो नकल की, मगर हमारे तो असठ ही कुष्णका जन्म हुवा हे प० चंदुलाल- तो क्या इसका नाम कृष्णदी रखोंगे? ( पासमें खड़ी हुई “ माछती .” अपने बाप, शारदाचंद्रसे ) आपा- नी.! मां कहती ,हैकि. रुप अष्मीफी कृष्ण ही नाम रखना है. ) चारदाचंद्-(पुनीसे) चल! चल.! बैठ चुपकी देकि, हमारे घरमें _ आजतक किसीनेभी ऐसे चोट्टे.जैसा नाम रखा है! जो हम रखे! नाम रखनेका दिन तो आने दे! हमतों इसका नाम “ विचवभरनाय ” रखेगे .! ( सुबह होतेद्दी शारदाचंद्रके पोता हुआ यह सब साक स्वधिओं में.मादम होगया, कहे सोने बधाई ( मवारक ) देनेको




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