क्षत्र -चूड़ामणि -उत्तरार्ध | Kshtrachudamani-uttrardh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भावाधदी पिकाटीकायां काछांगारकोपकरणवर्णनम । [डे]
भावाथः--जैसे घी डालने से झम्मि की उवाला अधिक
बढ़ जाती है, बसे ही काप्ाज्ञार भो अधघोलिखित कार्र्णों से
जीवन्धर पर नाराज तो पहले से ही था, छौर जिस समय
उनके द्वारा किये गये 'झपने हाथी के झपमान का भी समाचार
उसने सुना, उस समय बद्द उन पर 'और भी जल भुन गया ॥३॥
संगादन॑ंगमालाया, . विजयाच. वनाकसामू
वीखाविज॑यतश्वास्य, कोपाचिः स्थापिवो हाँदि ॥४॥
अन्दयारधों--घनज़मालायाः >> मनज़साछा के, सज़ाव ८-
व्याहने से चनौकसान् न भीछों के, विजयात् > जीतने से, 'च-- और,
चीशाविजयतः >> वीणा में विजय पाने से, भ्रस्य-ूइस काष्टाज्वार के,
हृदि न हृदय में, ( जीचन्घरं प्रति > जीवन्घर के प्रति ) कोपाझि. >>
क्रोघरूपी असि, स्थापित.-नस्थित, भासीद न थी ॥४।।
सावार्थ---१-अपना अनादर करने वाली ्नज्ञमाल्ा
नामक किसी सुन्दर युवती के साथ विवाद करने, २-राजकीय
मददती सना को पराजित करने वाले भीलो के जीतने और
३-अपने हार जाने पर भी गुणमाला के साथ वीणा में
विजय पाने के कारण जीवन्घर से काप्टाज्ञार पद्िले से ही
ईचिढ़ा हुमा था ॥४॥
गुणाधिक्यं च. जौवाचा-माधेरेव हि. कारणसू
नाचत्व॑ नाम किननु स्या-दास्ति चेदू यूणुरागिता ।1$1॥।
अन्वयार्धो--जीवानास् न प्राणियों की, गुणाधिक्यस् ० गुर्णों
की अधिकता, चस््>मी (अन्पेपाश्ू न करों के) श्राघे: न सानसिक दुम्ख
का, कारणमू न कारण, एव ही, (भवतिन्त होती है) , नीति.-दिन्-
क्योंकि, चेव्न यदि; गुणरायिता > .गुणम्राहकता, अस्ति -- दो,
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