ज्ञानार्नव: एक समीक्षात्मक अध्ययन | Gyanarnav (Ek Samikshatmak Adhyayan )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाशकीय श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी स्वाध्यायी संघ, गुलाबपुरा श्रद्वेय गुरुवर पन्‍्नालालजी महाराज साहब के द्वारा स्थापित हुआ है जो स्वाध्यायी बन्धुओं का निर्माण करता है और उनके माध्यम से उन क्षेत्रों में पर्युषण पर्व का आराधन कराता है जहां पर साधु साध्वियों का चातुर्मास नहीं होता है। स्वाध्यायी संघ स्वाध्यायियों को प्रशिक्षण देता है, उनके लिए समुचित साहित्य का प्रकाशन करता है और मासिक पत्रिका “स्वाध्याय सन्देश”' भी निकालता है। आचार्य श्री सोहनलाल महाराज साहब द्वारा दिये गये प्रवचन एवं उनके द्वारा रचित काव्य मंजरी भी प्रकाशित की जो काफी लोकप्रिय सिद्ध हुई है। तीन बहिनों ने दीक्षा ली जिनके नाम क्रमश: साध्वी सुश्री ज्ञानलता, दर्शनलता एवं चारित्रलता रखा। साध्यियों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र का विकास कर अच्छी ख्याति प्राप्त की। तीनों बहिनों ने साथ-साथ एम.ए. (संस्कृत) की परीक्षा दी और साध्वी सुश्री दर्शनलताजी को राजस्थान विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ। तीनों साध्वियों ने साथ डाक्टरेट की उपाधि के लिए प्रयास किया और राजस्थान विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. प्राप्त की। साध्वी सुश्री दर्शनलताजी महाराज साहब ने आचार्य शुमचन्द्र के ज्ञानार्णव ग्रन्थ का अध्ययन कर डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। ज्ञानार्णव योग साधना का एक अद्वितीय ग्रन्थ है और ध्यान तथा योग साधना की अत्यन्त गूढ़ अनुभूतियों को प्रकट करता है। इतने गहन विषय पर साध्वी सुश्री दर्शनलताजी ने विद्रतापूर्ण, अध्ययन कर रुचि पूर्ण, ढंग से अपना शोध ग्रन्थ तैयार किया जिसकी जानकारी सुविज्ञ पाठकों को होना आवश्यक है। जैन साधना में छ: आन्तरिक तप में ध्यान एवं कायोत्सर्ग महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसका ज्ञान पूर्व में आचार्यों को था और काफी अम्यास भी किया लेकिन मध्य काल में यह लुप्त प्राय; हो गया और अधिकांश में बाह्य तप एवं बाहरी क्रियाओं पर बल दिया जाने लगा। अन्तर की गहराई में गये बिना सही धर्म भी प्रकट नहीं होता। अन्दर की अनुमूति में जाने के लिए ध्यान एवं कायोत्सर्ग ही मार्ग है। अत: सच्चे धर्म की पहचान के लिये एवं अक्षय सुख प्राप्त करने के लिये ध्यान प्रक्रिया से गुजरना ही होगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति में यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। इसी आशय से स्वाध्यायी संघ, गुलाबपुरा इस पुस्तक को सुविज्ञ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। आशा है इसका अध्ययन कर आत्मिक सुख की प्राप्ति करेंगे। इस पुस्तक के प्रकाशन में हमारे परिवार को वित्तीय सहयोग देने का सौभाग्य मिला है। इसके लिये हम कृतकृत्य हैं। ए-201, दशरथ मार्ग रणजीतसिंह कूमट हनुमान नगर, अध्यक्ष जयपुर श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी स्वाध्यायी संघ दिनांक 2 अगस्त, 1997 गुलाबपुरा गए जकस्टल (चना




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