घर जमाई | Ghar Jamai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द जा सकती हैं । हम लोगों को इजाजत नहीं है। हम तो बस इसी रास्ते से जा सकते हैं जिससे भाये हैं । वह देखिये, मलिक साहब वाग में टहल रहे हैं ।” और हमने देखा कि इन हुसरत को हम कहीं देख चुके हैं । दिमाग पर काफी जोर डालने के बाद याद आया कि. बहुत दिंग हुए जव कही देखा है । शायद स्कूल के जमाने में और फौरन याद ला गया कि इनकों कहीं देखा है । हिस्ट्री की किताब मे ला रिपनत की देखी बह तस्वीर अपनी बराबरी पाकर दिमाग में इस वक्‍त उभर आई है । अब हम मलिक साहब के बिल्कुल सामने पहुंच गये थे । मलिक साहव को हमने सलाम किया । मगर बह तॉंगे वाले को ओर मुखातिव हुए । कहाँ रहे ताजद्दीम इतने दिन ?' मालूम हुआ ताँगे वाले का नाम ताजद्दीम है 1 वहं खींसे निकाल कर बोला--थोड़ा बीमार था, इसलिए नहीं आया ! आज इन बाबूजी' को लेकर भाया हुँ । इनको घर चाहिए ।' मलिक साहब ने हमको सिर से पैर तक देखते हुए कहा, 'घर ?' मानों हम घर थे भौर यह हमारा नक्शा देख रहे थे-- मगर घर यहाँ कहाँ धरा है ?' ताँगे वाले ने कहा--'वही, जिसमें मैं रहता था 1 मलिक साहब ने कहा--'अरे वहू...लाहौल विला कुव्वत। उसंमे रहेंगे सह--क्या माम है जनाब का ?'” हमने सच-सच लता दिपा--“शॉकत कहते हैं इस नाचीज़ को । वहुत' मेहरबानी होगी अगर सर ढाँपने को कोई जगह दे दें ।' मलिक साहब ने योधा खुश होकर फरमाया --'इसका मतलब यह है मोया पढ़ें लिखे आदमी हैँ । सुरत से खानदानी और इज्जतदार मालूम होते हैं। वतन जनाब का ?” अर्ज़ किया--ग़रीबख़ाना लखनऊ में था 1 मलिक साइंब ने बडप्पन दिखाते हुए कह्ा-- डर आपके साथ हैं कोन-कोन 77




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