घर जमाई | Ghar Jamai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द
जा सकती हैं । हम लोगों को इजाजत नहीं है। हम तो बस इसी रास्ते
से जा सकते हैं जिससे भाये हैं । वह देखिये, मलिक साहब वाग में टहल
रहे हैं ।”
और हमने देखा कि इन हुसरत को हम कहीं देख चुके हैं । दिमाग
पर काफी जोर डालने के बाद याद आया कि. बहुत दिंग हुए जव कही
देखा है । शायद स्कूल के जमाने में और फौरन याद ला गया कि इनकों
कहीं देखा है । हिस्ट्री की किताब मे ला रिपनत की देखी बह तस्वीर अपनी
बराबरी पाकर दिमाग में इस वक्त उभर आई है ।
अब हम मलिक साहब के बिल्कुल सामने पहुंच गये थे ।
मलिक साहव को हमने सलाम किया । मगर बह तॉंगे वाले को ओर
मुखातिव हुए ।
कहाँ रहे ताजद्दीम इतने दिन ?'
मालूम हुआ ताँगे वाले का नाम ताजद्दीम है 1 वहं खींसे निकाल
कर बोला--थोड़ा बीमार था, इसलिए नहीं आया ! आज इन बाबूजी'
को लेकर भाया हुँ । इनको घर चाहिए ।'
मलिक साहब ने हमको सिर से पैर तक देखते हुए कहा, 'घर ?'
मानों हम घर थे भौर यह हमारा नक्शा देख रहे थे-- मगर घर
यहाँ कहाँ धरा है ?'
ताँगे वाले ने कहा--'वही, जिसमें मैं रहता था 1
मलिक साहब ने कहा--'अरे वहू...लाहौल विला कुव्वत। उसंमे
रहेंगे सह--क्या माम है जनाब का ?'”
हमने सच-सच लता दिपा--“शॉकत कहते हैं इस नाचीज़ को । वहुत'
मेहरबानी होगी अगर सर ढाँपने को कोई जगह दे दें ।'
मलिक साहब ने योधा खुश होकर फरमाया --'इसका मतलब यह है
मोया पढ़ें लिखे आदमी हैँ । सुरत से खानदानी और इज्जतदार मालूम
होते हैं। वतन जनाब का ?”
अर्ज़ किया--ग़रीबख़ाना लखनऊ में था 1
मलिक साइंब ने बडप्पन दिखाते हुए कह्ा-- डर आपके साथ हैं
कोन-कोन 77
User Reviews
No Reviews | Add Yours...