कैकेयी | Kaikai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शापा की चारुता, भावों की गम्मीरता, मुहावरों का प्रयोग, कल्पना-
व
विलास भर मामिक अभिव्यवितयों के कुछ और नमूने देखिये--
श् थ
मृक्षये गमन वे'
का अभाव अहित्दी प्रदेश
चले दण्ड-फोदण्ड-मुगदल-गदा,
तड़ित कौंघती मसि चमकती जिंघर ।
विजय तो बिचारी भटकती रही,
इघर से उघर, फिर उघर से उधर ॥
् (सर्ग ३, छन्द २६)
चांद ने तब पुर्वे दिशि से शाँककर,
मुसकुरा नभ पर बिखेरा सित सुमन ॥
हुए से खिल-सिल उठा संध्या-वदन,
प्रेस शशि का सहज, निश्चल आँक कर ॥
(सगे ४, छन्द ३४)
प्रथम इसके कि डसने फन भुजग खोले ।
उचित यह, कुचल दें मुझ गरलमय उसका ॥
(सर्ग ४५, छन्द ५०)
रहें राज्य तब, शूठ कहूँ तो दें सजा ।
उड़ती चिड़िया-गगन, चेरि पहुचानती 0
(सगे ७, छन्द ४)
फिर करे सन्देह फोई इस तरह तो/
तन सुलगता लोट उर पर साँप जाता ।
(सर्गे ८, पंक्ति १२१/१९९)
भोर होते भाग्य पर कोई हेसेगा/
आ' किसी पर भाग्य ही हंसने लगेगा ।
(सगे प, पंक्ति १ प६/१ ७)
झोभन, या मंतर रणधीरों को ?
हो, कुछ कर जावे वीरों को ॥
(सर्ग ११, छन्द ६७)
छोड़ते उसे) क्यों रोष उस पर द
नेढ अपने, दोष किस पर ?
(समगं १४, छन्द ५९)
रण या वन गहन, सदन
हर संकट देवी अवसर
(सगे १र्थ, छन्द र८) में जैसे एकाघ स्थान पर ने
के प्रभाव के कारण समझना चाहिए । सगे ५ के ३४ वें
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