अर्थशास्त्र के सिद्धान्त | Arthashastra Ke Siddhant
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
940
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ला अ्र्यशार के सिंद्धान्त
प्रवृत्तियो के कारण हुई जिनका स्मिय ने वर्णन क्या है। परन्तु वे कुछ इस
कारण भी हुई कि श्रयंशास्त्र का झष्ययन फिर से वहुत कुछ उन लोगो के हृप्यो
में जा पडा जिनकी झक्ति का झाघार मानसिक मिचारो की अपेक्षा साहसपूर्ण
कार्ये था 16
भ्र्थशास्त को श्रालोचना न केवल रस्किन तथा कार्लाइल ने हो की वरवू
सिसमोन्डी ब्रादि सुधारको ने भी की । सिसमोन्डी ने कहा कि अर्थशास्त्र को धन
का विज्ञान कहना दिल्कुल गलत है । अर्थशास्त्र के भ्रध्ययत थे घन की अपेक्षा
मनुष्य की प्रधासता होनी चाहिये । अर्यदास्त्र के भ्रष्ययन का वास्तविक लक्ष्य मनुष्य
होना चाहिये । यदि झर्यशास्त्र मनुष्य जीवन के सब पहलुओं पर प्यान न दे
सो कम से कम उसको उसके भोतिक कल्याण परे तो ध्यान देना चाहिये। उसने
बहा कि यदि हम मनुष्य को भूल कर केवल सम्पत्ति पर हो ध्यान देंगे तो प्रारम्भ
से ही हम गनत मार्ग पर चल पड़ेंगे । उसने श्रागे कहा कि प्र्यशास्त्र का एक नतिक
उद्देश्य है। इस शास्त्र का केवल धन ही से सम्बन्ध नहीं है बरनू इसका सम्बन्ध
धन से मनुष्य के संदर्भ मे है। इसको आधिक क्रिया का प्रष्ययन मानव कल्याण
पर इसके प्रभाव वो ध्यान म रखते हुये करना चाहिये। उसने बताया कि एक
चास्तबिव धनी देदा वही है जिसमे कि. दस्तुमों का यह वढा समूह, जिसको सम्पत्ति
की सज्ञा दी जाती है, धनी सथा निर्धन दोनों प्रकार के लोगो की झ्ावश्यकतायें
पूरी करने के काम भ्राता है । सम्पत्ति की परिभाषा बर्ते हुए उसने कहा कि
मनुष्य के साथ ही उसका सम्बन्ध स्यापित करके हम इसके विपय मे कुछ विशेध
जीनकारी प्राप्त कर सकते है। सम्पत्ति मनुष्य के श्रम द्वारा उत्पन्न वी गई
बस्तुन्नी का एक बड़ा समूह है जिसका उपभोग मनुष्य वी. आवध्यक्ताथ्रों दारा
होता है। इसलिये उसन कहां कि हम सम्पत्ति को सम्पत्ति तभी कह सकते
हैं जवकि उसका वितरण उचित ढग से हो ! बह वितरण के केत्ल संद्धान्तिक
विवरण से ही सतुष्ट न था । इसी कारण उमने निर्षन लोगो पर विशेष ध्यान
दिया । उसने वत्ताया कि किस प्रकार मशीनों के श्राविष्वार, स्वतन्त्र प्रतियोगिता
सथा निजी सम्पत्ति के कारण मनुष्य के जीवन मे परिवर्तन था. गया है। इसी
कारण उसन कहा कि अयंधास्त एक वह हप्टिकाग्ग से धन का सिद्धान्त है
श्ौर कोई सिद्धान्त, जिस+ भ्रस्तिम विश्लेपण वरने पर भी उससे मनुष्य के सुख की
बृद्धि नदी हाती, विज्ञान कहलाने याग्य नहीं है ।
यहा यह वात वतापों अनुचित न होगी वि जे० दी० से से सिसमोन्डी की
बसे परिभाषा वी बड़ी मजाक पडाई है। उसने कहां है कि सिसमान्टी वे अनुसार
अपशास्त एक एसा विज्ञान हूँ जिसका उद्दग्य सानव मुख की रक्षा करता है ।
इस कारण व उन सागो के लिय जिनका सम्बन्ध सातव कल्याण से है, अगस्त
का ज्ञान वहुत झावइ्यक है । इस प्रकार घासका दे लिय इसका लाने प्राप्त करता
* चघँइ9ि21->शिधफ्टाफडिड 90, छ0-51
कि
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