श्री आनंदघन कृत चोवीशी | Shri Aanandghan Krit Chovishi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३)
एह उपदेशनुं सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमें नित्य ध्यावे
ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदधन राज पावे
घा० 9
श५ श्री धर्मनाथ जिन स्तवन.
सारंग रसीयानी देगी.
धरम जीनेसर गाउं रंगसुं, भंगम पढ़सेा हे। प्रीत जिनेसर
बीजा मन मंदिर अ(णु नहीं, ए अम कुलबट रीत जिनेसर घर्म० *
धरम घरम करते जग सह फीरे, धर्म न जाणे हो मम जि०
घरम जीनेसर चरण ग्रद्या पछी, का न बांधे हो कमें जी० धर्म, २
प्रचचन अंजन जे सदगुरु करे, देखे परम नीधान जी ०
हृदय नयण नीहाले जग धणी, महीमा मेरु समान... जी० घन, दे
देडत देडत देडत देडिओ, जेती मननीरे देड जी ०
परम प्रतीत विचारों दुकडी, सुरुगम लेजारे जाड ... जी० थम, ४
एकपसी केम भीतिवरें पड़े, उमय भीत्या हुए संघी जी ०
इंरागी हूं मोटे फंधिओ, हुं निरागी निरवंध जी० घमे, ५
परम निधान प्रगट मुख आगले, जगत उलंपी हे जाय जि०
ज्योति बिना जुओ जगदीसनी, अंप्रेअंध पुलाय.... जि० धर्म, पे
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