श्री आनंदघन कृत चोवीशी | Shri Aanandghan Krit Chovishi

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Shri Aanandghan Krit Chovishi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) एह उपदेशनुं सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमें नित्य ध्यावे ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदधन राज पावे घा० 9 श५ श्री धर्मनाथ जिन स्तवन. सारंग रसीयानी देगी. धरम जीनेसर गाउं रंगसुं, भंगम पढ़सेा हे। प्रीत जिनेसर बीजा मन मंदिर अ(णु नहीं, ए अम कुलबट रीत जिनेसर घर्म० * धरम घरम करते जग सह फीरे, धर्म न जाणे हो मम जि० घरम जीनेसर चरण ग्रद्या पछी, का न बांधे हो कमें जी० धर्म, २ प्रचचन अंजन जे सदगुरु करे, देखे परम नीधान जी ० हृदय नयण नीहाले जग धणी, महीमा मेरु समान... जी० घन, दे देडत देडत देडत देडिओ, जेती मननीरे देड जी ० परम प्रतीत विचारों दुकडी, सुरुगम लेजारे जाड ... जी० थम, ४ एकपसी केम भीतिवरें पड़े, उमय भीत्या हुए संघी जी ० इंरागी हूं मोटे फंधिओ, हुं निरागी निरवंध जी० घमे, ५ परम निधान प्रगट मुख आगले, जगत उलंपी हे जाय जि० ज्योति बिना जुओ जगदीसनी, अंप्रेअंध पुलाय.... जि० धर्म, पे




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