शास्त्रार्थ देहली | Shastrartha Dehali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२१७) सींग मान छेना चाहियें, अमीनकें नानी इच्छे और एक इच्छाका कुछ भी उत्तर नहीं हुआ है, ईश्वरकी इच्छा क्यों पेदा होती है इसका भी कुछ उत्तर नही हुआ । से शक्तिमान ईश्वर हैं तो बुरे काये क्यों होते हूँ आयकमार सभाका तृतीय उत्तरपन्र | घासादिरमें कार्यत्व स्वीकारते नुद्धिमतकरतुनन्पत्व सिद्ध किया गया । काय्येकी बुद्धिमत्कत्ताके साथ व्याप्ति सिद्ध कर चुका हूं । आपने कोई ऐमा दृष्टात नहीं दिया जो बिना बुद्धिमान कत्तासि नन्य हो। घासादिमें ईश्वर अनुमान सिद्ध है, परोशका निषेध नहीं करत तो परोक्ष ईश्वर भी आपने मान छिया । पिता पुत्रका सम्बन्ध अनाटि प्रत्यक्ष सिद्ध नेसे वैसे ईश्वरका नगत्‌ उलनन करनेमें भी सम्बन्ध जानें। घासादिमे ईश्वर नियन्ता होनेसे निपिद्ध नहीं हो सकता 1 ईश्वकके विकार्त दोपका परिहार कर चुका हू। जड़ कर्मेका स्रयं फल नियमसे न वन सकमेपर ईश्वर सापेक्ष कर्म है जेसे आपके दारीरमें रोमादि उसन होनेसे आत्मा सिद्ध है वेसे घ्राप्तादिमें ईश्वर होनेते उसत्ति आदि सिद्ध जानें। से शक्तिमान ईश्वर न्याय पूरवेक पार्पोति रोकता हैं ऐसा न मानने आपके तीर्वकरों पर भी समान दोप रहेगा। बेके सीगसे एश्पीकि सींग क्यों नहीं यह विपम कथन है परन्तु कार्य बिना चेतन कर्ताके कोई नहीं होता अनन्त शक्ति परमात्मामें इच्छा स़माव सिद्ध कार्य करती है जैसे आपके वीतराग तीर करोंमें उपदेश करनेकी इच्छा होती है पर वे दोपी नहीं । वैसे ही परमात्मामें भी नानो यही समाधान पार्पोके विषयमें जानिये। ,




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