भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का नाट्य साहित्य | Bharatendu Babu Harishchandra Ka Natya Sahity
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
383
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| पू्
सर्व-साधारण नीति थी । चे मारतीम नागरिकों को यूरोपीय उन्तुत्त नागरिकों की
माँति नागरिक सुरक्ता के श्धिकार दिलाने मे प्रयत्लशील रहे । यह श्ान्दोलन
धार्मिक तथा नागरिक स्वतन्त्रता का ही श्रान्दोलन समभा जाना चाहिये | सन्
१८३३ ई० में ब्रह्-समाज के सस्थायक राजा राममोहन राय की म्त्पु के पदचात्
समाज-सेवा तथा उक्त आन्दोलन का कार्य भार उनके पद-चिन्हों का श्रनुगमन करने
वाले श्री रामनाथ ठाकुर, श्री प्रसन्नकुमार ठाकुर, श्री दारिकानाथ टेगोर तथा श्री
देवेन्द्र ट्गोर पर पड़ा ।
श्री केशवचन्द सेन उम्रवाटी समाज-सुधारक के रूप में द्वतीण हुये ।
१८ ई० मे भारतीय ब्रह्म-समाज की स्थापना की, जिनकी सेवाओं ने भारतीय-
समाज को नवीन पथ प्रदर्शित किया | दम तक के समाज सुधारकों मे राष्ट्रीय चेतना
तथा मारतीय स्वतन्त्रता की विचारधारा का उदय नहीं हुमा था | केवल सुधारवादी
विचारों द्वाप देश आर समाज का मसला चाहदे थे | पाइचात्य सभ्यता तथा श्रत्रेजो
के उदार शासन की प्रशसा तथा उनकी क्षत्र छाया म॒सास्कृतिक तथा सामाजिक
उत्थान की नीति प्रयोग में लाई जा रददी थी । ब्र्-समाज श्ीर उसके प्रवर्तकों के
प्रभाव के कारण पादचात्य सम्यता एव बविद्याद्यों का भारतीय समाज पर उत्तरोत्तर
प्रमाव बटता गया । इतिहास, साहित्य, न्याय, दर्शन, विज्ञान, कला, धर्म श्रादि मे
नवीन जीवन का सचार हुआ । वे नये श्ावरण घारण करके नयी दिशा मे
विकित होने लगे । किन्तु परिवतन की गति बड़ी ही वेगवत्ती थी जिससे उसमें
गुण की श्रंपक्षा श्रवगुणों का श्रतुकरण श्रधघिकता से किया गया । पादचात्य सम्पर्क
का परिणाम स्वतन्त्रता प्राप्ति की प्रगल इच्छा का होना समभा जाता है, श्रतएव
लोग खान पान, विचार-विनिमय तथा काम करने की स्वतन्त्रता पर श्रधिक्ता से
यल देने लगे । पाव्चात्य वमव की वस्तुद्नीं श्रीर रहन-सहन की प्रयाश्रों में परिवत्तन
दे कारण सामाजिक श्रनुशासन भग करने का फैशन सा प्रचलित हो गया । श्रग्रेजी
शिट्टाचार से प्रमावित मद्य-पान तथा नारी-स्वातन्य की चिचारधार ने जोर पकड़ा |
शिक्षित चरगे मे चरित्र-हीनता, धार्मिक विरोध. भीतिक्वाटी रहन-सुहन वा श्रधिकता
मे प्रचार हुश्रा । ऐसा प्रतीत होता था. कि प्राचीन सभ्यता के स्तम्मस्वरूप धार्मिक
अर्न्यों श्र जीवन श्रादशों की तिलाजलि देकर लोग पाध्चात्य सभ्यता को
श्रेगीकार करने लगे थे। श्र भारतीय सम्कृति तथा सभ्यता सर्वदा फे लिये
परित्यक्त होती दिखाई देती थी | ऐसी श्रवस्था में प्रतिक्रिया का होना स्वामाविक
था । पयधिक वाल में हिन्दू सम्यता पीर सस्कून वो श्रपनाने तथा उसका पुनुरुथान
करने बाला कोई सहा-पुरुप भारतीय रंगमंच पर से श्ाया था, किस्वु॒पालान्तर में सी
पक़िम चन्द्र चट्नों ने गे दर्शन से हिन्दू-दर्स वीर नीति सो एक विजेचसात्सक
सेस-म्गला निकाली | इसी समय उत्तरी भारत में स्वामी दयानन्द सरस्यती नें श्राई
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