तत्त्वनिर्णयप्रासाद | Tattvanirnay Prasad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
766
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मब््लाचरणम् | . ड
ये नो पण्डितमानिनः इमदमस्वाध्यायचिन्ताचिताः
रागादिश्रहवब्चिता न मुनिशिः संसेविता नित्यद्ः ॥
नाकष्टा विषवेमंदेन मुदिता ध्याने सदा तत्परा-
स्ते श्रीमन्मुनिपुड़वा गणिवराः कुवन्तु नो मढूठम्ू ॥ ५ ॥
जे पांडित्यमद रहित, क्रोधादिको दांत करनेमें, इंद्रियोंका दमन
करनेमें, स्वाध्याय ध्यान करनेमें लीन, रागादि ग्रह करके अवंचित,
(नहीं ठगाये हुवे, मुनियों करके नित्य संसेवित, विषयों करके अछिस,
( पांच इंद्रियोके तेवीस विषयोंसें पराड्सुख ) अष्टमद ( जातिमद,
कुछमद, बलमद, रुपसद, तपमद, ज्ञानमद, लाभमद, ऐश्वयमद, )
रहित, और ध्यानमें सदा तत्पर हैं, वे श्रीमान मुनियोंमें प्रधान गणधर
और पूर्वाचार्य हमारें मंगल करो ॥ ५ ॥
( ५. यह काव्यमें जिनके किये शाखत्रंसें शास्रकारकों बोध प्राप्त
हुआ तिनका बहुमान किया हे. )
कलमकछ़ितपुस्तन्यस्तहस्ताग्रमद्रा
दिदत सकठसिद्धि श्ञारदा सारदा नः ॥
प्रतिवदनसरोजं या कवीनां नवीनां
वितरति मधघुधारां माधुरीणां घरीणामू ॥ ६ ॥
जो कवियोंके मुखकमलमें नवीन ( अपूर्वदी ) श्रेष्ठ और मघुर मधु-
धारा देती है, लेखनी संयुक्त पुस्तक धारण किया हे हस्ताग्र भागमें
जिसने अैसी मुद्रासूत्रिको धारण करनेवाठी, और सारवस्तुको देनेवाली
श्री सरस्वती देवीं ( श्री भगवतकी वाणीकी अधिष्टायिका देवी ) सकल
सिद्धि देओ ॥ ६ ॥|
(६. यह स्ोक्में श्रुत देवकी स्तुति करी है. )
श्रीवीरदासनाधिष्ठ यक्ष मातड्रनामकम् ॥
सिद्धाधिकां त्वहूं देवीं स्तुवे विज्नोपशान्तये ॥ ७ ॥
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