तत्त्वनिर्णयप्रासाद | Tattvanirnay Prasad

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Tattvanirnay Prasad by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मब््लाचरणम्‌ | . ड ये नो पण्डितमानिनः इमदमस्वाध्यायचिन्ताचिताः रागादिश्रहवब्चिता न मुनिशिः संसेविता नित्यद्ः ॥ नाकष्टा विषवेमंदेन मुदिता ध्याने सदा तत्परा- स्ते श्रीमन्मुनिपुड़वा गणिवराः कुवन्तु नो मढूठम्‌ू ॥ ५ ॥ जे पांडित्यमद रहित, क्रोधादिको दांत करनेमें, इंद्रियोंका दमन करनेमें, स्वाध्याय ध्यान करनेमें लीन, रागादि ग्रह करके अवंचित, (नहीं ठगाये हुवे, मुनियों करके नित्य संसेवित, विषयों करके अछिस, ( पांच इंद्रियोके तेवीस विषयोंसें पराड्सुख ) अष्टमद ( जातिमद, कुछमद, बलमद, रुपसद, तपमद, ज्ञानमद, लाभमद, ऐश्वयमद, ) रहित, और ध्यानमें सदा तत्पर हैं, वे श्रीमान मुनियोंमें प्रधान गणधर और पूर्वाचार्य हमारें मंगल करो ॥ ५ ॥ ( ५. यह काव्यमें जिनके किये शाखत्रंसें शास्रकारकों बोध प्राप्त हुआ तिनका बहुमान किया हे. ) कलमकछ़ितपुस्तन्यस्तहस्ताग्रमद्रा दिदत सकठसिद्धि श्ञारदा सारदा नः ॥ प्रतिवदनसरोजं या कवीनां नवीनां वितरति मधघुधारां माधुरीणां घरीणामू ॥ ६ ॥ जो कवियोंके मुखकमलमें नवीन ( अपूर्वदी ) श्रेष्ठ और मघुर मधु- धारा देती है, लेखनी संयुक्त पुस्तक धारण किया हे हस्ताग्र भागमें जिसने अैसी मुद्रासूत्रिको धारण करनेवाठी, और सारवस्तुको देनेवाली श्री सरस्वती देवीं ( श्री भगवतकी वाणीकी अधिष्टायिका देवी ) सकल सिद्धि देओ ॥ ६ ॥| (६. यह स्ोक्में श्रुत देवकी स्तुति करी है. ) श्रीवीरदासनाधिष्ठ यक्ष मातड्रनामकम्‌ ॥ सिद्धाधिकां त्वहूं देवीं स्तुवे विज्नोपशान्तये ॥ ७ ॥




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