अन्नमाचार्य और सूरदास का तुलनात्मक अध्ययन | Annamacharya Aur Soordas Ka Tulanatmak Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Annamacharya Aur Soordas Ka Tulanatmak Adhyayan by एस॰ संगमेशम् - S. Sangamesham

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एस॰ संगमेशम् - S. Sangamesham

Add Infomation AboutS. Sangamesham

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्राइकथन श्प यहां दोनों भक्तकर्वियों की भवष्ति-पद्धति की तुलना उ्टिष्ट हैं, अतः निम्नलिखित प्रकार से सुविधा केलिए इस अध्ययन को पांच अध्यायों में विभक्लकर दिखाया गया है । प्रथम अध्याय में आलोच्य कवि अज्ञमाचार्य और सुरदास के जोदन-वसों का प्रामाणिक विवरण देकर, उनके धार्मिक संप्रदाय, दार्दनिक विद्घास, भक्ति- साधना, रचना-विस्तार आदि का परिचय दिया गया है । फिर, दोनों कवियों के जीवन में घटित कुछ विदिष्ट घटनाओं के परस्पर साम्य तथा उनके कारण उन कथटियों के व्यक्तित्व पर पड़े प्रभाव को परीक्षा की गयी है । दोनों कवियों के व्यक्तित्व की भी तुलना करके उससे प्रभावित उनकी साधना जर रचनागत विशिष्टताओं को आंकने का प्रयत्न किया गया है । द्वितीय अध्याय को आलोच्य कवियों के साधना व साहित्य की पृष्ठशूसि के अध्ययन केलिए तीन खंडों में विभक्त किया गया हैं । प्रथम खंड में कवियों के समकालीन राजनतिक, धामिक, सामाजिक व साहित्यिक परिस्थितियों का प्रासों- शिक विवरण देकर, उनमें भवक्ति-साहित्य को प्रेरणा देनेवाले प्रमख, तत्वों का विवेचन किया गया है । द्वितीय खंड में भक्ति के ऐतिहासिक विकास का क्रम निर्िष्ट करके, झालोच्य कवियों की भक्ति-पद्धति के स्वरूप व स्वभाव का परिचय प्राप्त करने का प्रयत्न किया गया है । तृतीय खंड में विभिन्न भक्ति-संपघ्रदायों और उचको शास्त्रीय आधार संबादित करनेवाले विशिष्ट दाशनिक संप्रदायों का परिचय देकर आलोच्य कवियों के दादनिक मंतब्यों तथा साधना पढ़तियों पर परिलक्षित उसके प्रभाव को जानने का प्रयत्न किया गया है । तृतीय अध्याय को भी अध्ययन की सुविधा केलिए चार खंडों में विभक्त किया गया है । प्रथम खंड में आलोच्य कवियों के भक्ति-साहित्य की परंपरा और प्रेरणास्रोतों का अध्ययन करके, उनके परस्पर संबंध की जानकारी प्रशप्त को गयी है । फिर दुसरे खंड में दोनों कवियों के दाशतिक विदवासों और उनके साहित्य में प्रतिफलित उन मंतव्यों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। तृतीय खंड में दोनों कबियों की भक्ति-साधना का तुलमात्मक विवेचन किया गया है । चतुर्थ खंड में दोनों की सांप्रदायिक-साधना का विवरण देकर, तुलनात्मक दृष्टि से परस्पर संबंध को जांचने का प्रयत्न किया गया है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now