सलूना पर्व पूजन | Saluna Parv Pujan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सलूना पर्व पूजन  - Saluna Parv Pujan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दरबारीलाल - Darbarilal

Add Infomation AboutDarbarilal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १४. ) बोला वर मांगों विप्रराज, दूंगा मनवांछित द्रव्य आज । पग तीन भूमि याची दयाल, बस इतना ही तुम दो नूपाल। नुप हँसा समझ उनको झजान,बोला यह क्या लो,ओर दान । इससे दुछ इच्छा नहीं शेष, बोले वे ये ही दो नरेश ॥। सकंल्प किया दे भूमि दान, ली वह मनमें अति मोद मान । प्रगटाई अपनी ऋद्धि सिद्धि, हो गई देहकी विपुल ब्रद्धि ॥ दा पगम नापा जग समस्त, हा गया भूप बाल अस्त-व्यस्त । पग एक और दो भभिदान, बोले बलिसे करुशानिधान ॥। नतमस्तक बलिने कहा अन्य, है भूमि न मुभपर हे अनस्य । रख लें पग प्ुफपर एक नाथ, मेरी हो जाये पु्ण बात ॥| कह कर तथास्तु पग दिया झाप,सह सका न बलि वह मार-ताप | बोला तुरन्त ही कर विलाप, करदें अब मकको मा आप ॥। में हूं दोषी में हूं अजान, मेंने श्रपराध किया. महान | ये दुखित किये जो साधघुसन्त, अब करो क्षमा हे दयावस्त ॥। तब की मनिवरने द्या-दृष्टि, हो उठी गगनस मधुर वरष्टि । पागये दुग्ध वे साधु-त्राण, जन-जनके पुलकित हुये प्राण | घर परमें छाया मोद-हास, उत्सबने पाया नव प्रकाश । पीड़ित मनियोंका प्रणंमान,रख मधुर दिया श्राहदर दान ॥।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now