सलूना पर्व पूजन | Saluna Parv Pujan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
324 KB
कुल पष्ठ :
18
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४. )
बोला वर मांगों विप्रराज, दूंगा मनवांछित द्रव्य आज ।
पग तीन भूमि याची दयाल, बस इतना ही तुम दो नूपाल।
नुप हँसा समझ उनको झजान,बोला यह क्या लो,ओर दान ।
इससे दुछ इच्छा नहीं शेष, बोले वे ये ही दो नरेश ॥।
सकंल्प किया दे भूमि दान, ली वह मनमें अति मोद मान ।
प्रगटाई अपनी ऋद्धि सिद्धि, हो गई देहकी विपुल ब्रद्धि ॥
दा पगम नापा जग समस्त, हा गया भूप बाल अस्त-व्यस्त ।
पग एक और दो भभिदान, बोले बलिसे करुशानिधान ॥।
नतमस्तक बलिने कहा अन्य, है भूमि न मुभपर हे अनस्य ।
रख लें पग प्ुफपर एक नाथ, मेरी हो जाये पु्ण बात ॥|
कह कर तथास्तु पग दिया झाप,सह सका न बलि वह मार-ताप |
बोला तुरन्त ही कर विलाप, करदें अब मकको मा आप ॥।
में हूं दोषी में हूं अजान, मेंने श्रपराध किया. महान |
ये दुखित किये जो साधघुसन्त, अब करो क्षमा हे दयावस्त ॥।
तब की मनिवरने द्या-दृष्टि, हो उठी गगनस मधुर वरष्टि ।
पागये दुग्ध वे साधु-त्राण, जन-जनके पुलकित हुये प्राण |
घर परमें छाया मोद-हास, उत्सबने पाया नव प्रकाश ।
पीड़ित मनियोंका प्रणंमान,रख मधुर दिया श्राहदर दान ॥।
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