जिनवानी मेरे अंतर भया प्रकाश श्रधांजलि विशेषांक | Jinvani Mere Antar Bhaya Prakash Shradanjali Visheshank

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० श्रद्धांजलि विशेषांक ० जप देश-विदेश के जन-संचार माध्यमों ने इस महान्‌ भ्राध्यात्मिक विभूति को अपने श्रद्धा-सुमन श्रपित किये । विभिन्न गांवों और नगरों 'के श्रीसंघों एवं संस्थाश्रों दे अपने श्राराध्य देव के चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलियां श्रपित की । *जिनवाणी' कार्यालय में जो श्रद्धांजलियां प्राप्त हुई है, उनमें मुख्य हैं--निमाज, जोधपुर, जयपुर, भरतपुर, अलवर, पाली, दूदू, गंगापुरसिटी, गुलाबपुरा, विजय- नगर, ब्यावर, भीम, भीलवाड़ा, रायपुर, चित्तौड़गढ़, संगरिया, सलूम्बर, हुरड़ा, दन्दी, सेडतासिटी, नागौर, पीपाड़, कोसाणा, भोपालगढ, सुमेरपुर, सोजत, भादसोड़ा, उदयपुर, बांसवाड़ा, डेह, मदनगंज-किशनगढ़, श्रालूपर्व॑त, धूलियाकलां, तिरपाल, छोटी सादड़ी, कानोड़,. भदेसर, भवानीमण्डी, पचपहाड़, भालावाड़, क्रालरापाटन, शझ्रलीगढ़-रामपुरा, चौमहलला, बीकानेर, संवाई- माधोपुर, रसीदपुर, हस्तिनापुर, सिंगोली, गढ़ सिवाना, टोंक, चिकारड़ा, अजमेर, विलाड़ा, कुचेरा, कोटा, इन्दौर, भोपाल, मन्दसौर, सैलाना, कसरावद, राजनांदगांव, जबलपुर, देवास, उज्जेन, शभ्रहमदाबाद, नवसारी, नागपुर, औरंगाबाद, श्रसरावती, जलगांव, अ्रहमदनगर, बम्बई, बोदवड़, सलेगांव, धूलिया, उपलेटा, बंगलौर, बागलकोट, रायचूर, सिमोला, मद्रास, तिरुवन्नमल्लई, चिंदम्बरम्‌ू, सिकन्द रावाद, हैदराबाद, विजयवाड़ा, दिल्‍ली, राजगृह, कलकत्ता, सोनीपत, जीन्द, पानीपत, गोहाना सण्डी, भरटिण्डा, लुधियाना आदि के जैन श्री संघ और संस्थान । ग्र० भा० श्री जैन रत्न हितेषी श्रावक संघ, सम्यक्ज्ञान प्रचारक मण्डल और 'जिनवारी' परिवार के सभी सदस्य श्रद्धानत है श्राचार्य श्री के चरणों में । लगभग श्रद्धे शताब्दी तक जिन श्राचाये श्री से 'जिनवाणी' परिवार को सम्यक्‌ मार्गदर्शन श्र प्रेरणा-प्रकाश मिलता रहा है, उन श्रपने आराध्य गुरुदेव की पुण्य स्मृति को यह “श्रद्धांजलि विशेषांक' समर्पित्त करते हुए हम सब भावविज्ञल है, श्रद्धानत है । यह विशेषांक चार खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड “श्रद्धांजलि खण्ड' है, जिससे श्राचार्यों, मुनियों, विद्वानों, समाजसेवियों श्रौर भक्त श्रावकों द्वारा ग्रपने-ग्रपने श्रद्धा-सुमन श्राचार्य श्री के चरणों में सर्मापित किये गये है। द्वितीय खण्ड “काव्यांजलि' में कवियो श्रौर गीतकारों ने प्रपने आराध्य गुरुदेव को अपने भावोद्गार काव्यरूप में ऑर्पित किये हैं। तृतीय खण्ड “समाधिमरण' इस व विशेषांक का महत्त्वपूर्ण खण्ड है, जिसमें समाधिमरर, संधारा श्ौर संलेखना के सेवंध म स्वयं ग्ाचायें श्री के तथा अन्य विद्वानों के विचार संकलित है । चतुर्थ खण्ड आत्म-साक्ष्य' में ्राचार्व श्री के अन्तेवासी शिप्य युवा कवि मनीषी श्री गौतम मुनि ने ग्राचाय श्री के जीवन के संध्याकाल का “झाँखों देखा हाल” बड़े रोचक श्रोर




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