हिंदी गल्प माला | Hindi Galp Mala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.26 MB
कुल पष्ठ :
371
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर
पद यम:
-. अरघी 1
फिर कमी इस जीवन में देखूँगा, ऐसी आशा ती कमो न
गौरो तुर्म हो है... *
तापसी ने पास ज्ञांसर पणिश यो देखा, भीर भाँस
बहाये । कहा,>-” मोहन | इस जस्स में अपते जिस: चांछित
फल को फिर देखने पी आशा न थी, उसी को दूसरे जन्म
में पाने की लाठसा से तपस्या फरतो थी. पए यद कभो से
सोचा था कि--मगदात के इस 'शान्तिनिकेतन में
संमपण करते करते फिर उस मनोदर दुर्लभ ट्रश्य को देखू गो ।
आभो, मोहन !'प्रिपतम ! माज़ मिल ज्ञायं । शरीर को नहीं,
मन फो मन से मिला दें । -प्राणीं के भोतर, से हाथे निकाल
कर दोनीं हाथ मिलाते मिलाने, आभी मोहन उस अनन्त
सागर तक दौड़' चलें-नदीड़ कर मिल जांय जिसमें सारा
विश्व पिलकर : लोगें हो रहा आओ, ' हम भी उसी में
छीन हों । वियोग की बेदना जहाँ फिर ते सनाये, इससे खूब
डूब बार लोन हों । जदीं पर काल, आकाश, गौर कल्पना
का अन्त दो जाता है-चलो, उस अनन्त सीमा तक चलें ।
शितिज्न के उस पार, उस अनस्त शून्य स्थान में प्रकृति को
पारम्मिक अवस्था छिपी है ! घी प्रेस सजा टै-चलो, घहाँ
की हम 'अजा हो ! माथों हृदय को हुदय से दें--उस'
सनस्त सोमों के पार इन युग्म हदयों के अतिरिक्त और कुछ
हो! आझो, प्राणघन ! प्राणघन !#
विरहिंणी ने दोनों ,हाथ - आाक्ाशकी ओर फीला दिये--
जैसे भगवान की , मिक्षा हाथों में छी । फिर--उखने अपने
हाय पथिक की मोर यड़ाये; आर « तुम
'घत्य दो ,|- जीवन में 'फिर_ मिलन होता है। यह विश्य को,
रचना किए एकयाए कैसी मनोददर मालूम होने लगी । महा,
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