हिंदी गल्प माला | Hindi Galp Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अर पद यम: -. अरघी 1 फिर कमी इस जीवन में देखूँगा, ऐसी आशा ती कमो न गौरो तुर्म हो है... * तापसी ने पास ज्ञांसर पणिश यो देखा, भीर भाँस बहाये । कहा,>-” मोहन | इस जस्स में अपते जिस: चांछित फल को फिर देखने पी आशा न थी, उसी को दूसरे जन्म में पाने की लाठसा से तपस्या फरतो थी. पए यद कभो से सोचा था कि--मगदात के इस 'शान्तिनिकेतन में संमपण करते करते फिर उस मनोदर दुर्लभ ट्रश्य को देखू गो । आभो, मोहन !'प्रिपतम ! माज़ मिल ज्ञायं । शरीर को नहीं, मन फो मन से मिला दें । -प्राणीं के भोतर, से हाथे निकाल कर दोनीं हाथ मिलाते मिलाने, आभी मोहन उस अनन्त सागर तक दौड़' चलें-नदीड़ कर मिल जांय जिसमें सारा विश्व पिलकर : लोगें हो रहा आओ, ' हम भी उसी में छीन हों । वियोग की बेदना जहाँ फिर ते सनाये, इससे खूब डूब बार लोन हों । जदीं पर काल, आकाश, गौर कल्पना का अन्त दो जाता है-चलो, उस अनन्त सीमा तक चलें । शितिज्न के उस पार, उस अनस्त शून्य स्थान में प्रकृति को पारम्मिक अवस्था छिपी है ! घी प्रेस सजा टै-चलो, घहाँ की हम 'अजा हो ! माथों हृदय को हुदय से दें--उस' सनस्त सोमों के पार इन युग्म हदयों के अतिरिक्त और कुछ हो! आझो, प्राणघन ! प्राणघन !# विरहिंणी ने दोनों ,हाथ - आाक्ाशकी ओर फीला दिये-- जैसे भगवान की , मिक्षा हाथों में छी । फिर--उखने अपने हाय पथिक की मोर यड़ाये; आर « तुम 'घत्य दो ,|- जीवन में 'फिर_ मिलन होता है। यह विश्य को, रचना किए एकयाए कैसी मनोददर मालूम होने लगी । महा,




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