तुलसी - दल | Tulsi-dal (parmarth Granthmala )
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेरी हँसी
चाहते हैं, यह बुद्धिका सूबमसे सूकष्मतर होते-होते सर्वेथा विछुत
हो जाना नहीं तो क्या है १ जठका जरा-सा नगण्य कण सब
ओरसे परिपूर्ण पारावारददीन जलू-निधिका अन्त जानना चाहता
है, यह असम्मव भावना नहीं तो कया है १ जबतक वह अठग
खड़ा देखेगा तबतक तो पता ठगेगा कैसे * और कहीं पता छगाने-
की छगनमें अन्दर चला गया तब तो उसकी अछग सत्ता ही नष्ट
हो जायगी, फिर पता ठगायेगा ही कौन * जो हूँढने गया था, वहीं
खो गया ! अतः हे महामहिम मुनि-मन-मेहनन मायिक-मुकुट-मणि
राम ! मेरी समझसे तो तेरे इस हास्यका मम जाननेकी सामथध्य
जगत्के किसी भी प्राणीमें नहीं है । हो, कोई तेरा खास प्रेभी
तेरी छृपासे रहस्य समझ पाता होगा, परन्तु उसका समझना न
समझना हमारे छिये एकसा है, क्योकि वह फिर तुझसे अलग
रहता ही नहीं--
सो जाने जेहिं देह जनाई | जानत तुमहिं तुमह्दि दो जाई ॥
जो तेरी मधुर मुखुकानपर मोहित होकर तेरी ओर दौड़ता
है, और तेरे समीप पहुँच जाता है, उसे तो तू अपनी गेदसे
कभी नीचे उतारता नहीं, और जो विषय-विमाहित हैं उनको तेरे
रहस्यका पता नहीं !
आश्चर्य है कि इसपर भी हम तेरी छीठाओंके रहस्योदूघाटन-
का दम भरते है और जो बात हमारी स्थूछ बुद्धिमें नहीं जेंचती,
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