श्री सहजानंद - डायरी (१९५७) | Shri Sahajanand Dayari (1957)

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Shri Sahajanand Dayari (1957) by मनोहरजी वर्खी - Manohar Ji Varkhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प रु. / गौण हो गया । इस तरह पर्यायतें उतर कर गुणमे श्राये श्र पश्चात्‌ गुणसे भी उतर कर मात्र दब स्ाये'। द्रव्यकी दृष्टि सर्वोच्च हृष्टि है । इस दष्टिका . सहारा ही वास्तविक सहारा है | हक है + १४ जनवरी १६४७ ' प्रत्येक वस्तु स्वचतुष्टयसे सत है । उस चतुष्य्यको इन शब्दों कह. सकते है । भा न केशाश गुण सुणाश द्र्व्य प्रदेश गुण पर्याय सामान्य विशेष... सामान्य विशेष विशेष विशेष « आअखड स्वच्षेत्र' शक्ति परियुमन वस्तु त्ाकार शक्ति शक्त्यश श्मेद प्रम्तार शासन मग सत्‌ प्रचय लद्म स्वकाल च्यर्थं निवास श्ाकृति पर द्रव्य चेत्र भाव काल निष्क्रम दनुक्रम शास्त्र छेद सत्ता विष्कम्म प्रकृति श्रायत सामान्य विस्तार शील भेद तत्व व्यपदेश एक रूप विधा घर्मी स्वक्षेत्र घमं श्रविमाग प्रतिच्छेंद प्रघान प्रतार प्रकररण प्रकार द्र्न्य द्रव्य पर्याय... गुण सुण पर्णय विधि ' तियंगंश विशेष ऊदुध्वाश उ्न्चय सहक्रम «स्वरूप भाग पदार्थ ' व्यंजन पर्याय. झा्थ * ब्ये पर्याय , मूल ब्याप्ति खोत प्रवाह .. १५ जनवरी १६४७ एक माह तक अपनी दिन चर्या ऐसी हो'--




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