मानस माधुरी | Manas Madhuri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६ 1]
१७---गोस्वासीजी श्रौर नारी
1
प्रजनाथे कम सु्टाः--क्षेत्रूतास्पृता नारी बीजशूतः.स्मृतः-पुम्परवूद्ध
नारी दादद का संकुचित रथ वी ज में. पितृ: ,सघानत्व विस्तार दीलता, उत्क्रं-
मण की जीवधरमिता निरपेक्ष पूर्णता, _श्रनेक, की संख्या में एक ही क्षेत्र की
चीौरूचुगपतुदद्रा कप राशस्वारथणीलता, भोवतृत्वगुग्श,आदि-न क्षेत्र: में -मातृप्रघानत्व
सुड़ोलवीलता,-ज्ीवते की प्रवृत्ति-अर्थात् -मायाधर्मित्त, माहृत्वगुण के लिए बीज,
पुछुश्नाधित; एक/सम़यू एक-ही के-्नति ब्रदीयत!, व्याग्ाहनीलता, भोग्यता झाएदि-
पत्मकालद्प :है शबीज: का -हित, -बीज-का लक्य-है जगत्-का हित क्यू
भ्रप्नोबाहिब्त्यु,त्वीज़ सका >घर्म-लोक मकल्याण--वारिष्स बुलुदकी अधघानतादतकु
भ्रुवुलितू मिलजोल [से ;हाति-स्वां: प्रसुर्ति-चरित्रं तर कुल सात्मानमेव-व. स्व खू;
ज्सलेत जाया रकून उहि :रकषति-उहिला अतिवन्ध_ लिवाह ; कान्लटसरफ
प्रतिबर्घ: थे एया; कर्ज व्यशिन्नता ....का:्द तीसूरा_ प्रतिवर्ध - कामोधकरशा दम,
प्रमझुनि्दा का;--वह पूज्य-है: कुट्टम्बभालिका__ है, हदीसिं-है, अहाभागा (लचमी,
है किन्तु प्रमदारूप में .व॒ही-उद्थवेत्री- है, --स्नेहबून्या है... श्रष्टाइ दुग सा. सस्पू्ने है,
निरिन्द्िय ( सहज जड़... श्रमन्त्र __.( भ्रज्ञ )_श्रौर श्रनृत _( भ्रपावन ) है--गृह-
व्यवस्था नारी के लिए, समाज व्यवस्था , पुरुप के लिए--पुरुष प्रभुत्वशोल
न मावज्ञील--उसका विवेक श्रसन्तुलित न होने पाये इसलिए नियन्त्रण
श्ररव्यक उसकी “ मर्यादा भड़ ने होने पावे इसलिएं नियन्त्रण श्रावेदयक--
विरक्ति श्रोर संयर्म उसके लिए नहीं किन्तु पुरुषवर्ग के रही लिए विशेष श्रतएक
५0 के. लिए तारीनित्दा को प्रकरण है सम्मान, सेरक्षणा श्रौर
संगत्याग की 'घ्रचिकारिती --'सक चन्दन वर्नितािक भोगा'' का तात्पर्य
उततियों के देशकील पात्र के श्रनुसारे सहदयतापुरवेक मर्म सभा. जाय |
करा एँ केश लथना वन क के न
बज तर
१ मानस के उपाध्यान
भ्रहतमी उदार, वालि बंध श्र भुसुन्टि चरित्र गे सानस को प्रित्येके सेपट
कथा सीभिप्राथे हैं प्रितोपभानु की कथा, नारद मोह की कथार शिव! विवाह की
कसी सपकरम हम से भर सुसुन्धि की कथा 5पसहोर' सूप से-<प्रबेदिनी में उप
कमी के सित्य िमि युन्दरम' पर झवर्य 'ध्यान' रखा जाय श्रहत्योपिस्पीर्नि,
प्रेम्धार्लि देखते है समाज इ्थ्ि देखता है । बालिंः वधोपाख्यार्न 'बीर्ति के दो
प्रभ--प्रमनु के सभी कृत्य परदे की श्राड़ से 1 भुशुन्डि उपी्यीमे मुंदी को बेदी
मंत्र श्र मंत्र प्रवेशाधिकोरं ! भ्रक्ति ज्ञान विज्ञानें विरोगी, योग चरित्र रहस्य-
विभागा | कवि वांन | ज्ञान पुरूष हैं' कि नो री है) ज्ञान दीप है भक्ति मणि है,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...