हिंदी प्रेमियों से अनुरोध | hindi premiyo se anurodh

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hindi premiyo se anurodh  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक जनश्रति से ज्ञात होता है कि इस न्ञाह्मण पेरिया दुम्पति ने किसी कारण-वश ऐसी प्रतिज्ञा की थी कि अब के जो सन्तान होगी उसे जहाँ वद्द पैदा होगी वहीं इंश्वरापित कर देंगे । यह लोग जव भ्रमण कर रहे थे तो सद्रास नगर के समीपस्थ मयला- पुर के एक वाग में तिंरवछुवर का जन्म हुआ । माता अड़िं मोह के कारण बच्चे को छोड़ने के लिये राजी न होती थी, तव छोटे से तिरुववर ने साठ-स्नेद-विहलला साता को वोध कराने के लिये कहा->'“क्या सब की रक्ता करने वाला वहा एक जगत्पिता नहीं है और क्या मैं भी उसी की सन्तान नहीं हूँ ? जो छुछ होना है चह तो होगा ही, फिर माँ ! £तू व्यथ चिन्ता क्यों करती है ?”” इन शब्दों ने काम किया, माता का मोह भन्न हुआ और शिछ्ु तिरुवडवर वहीं मयलापुर,में छोड़ दिया गया । यह कथानक स्निग्ध है, सुन्दर है हृदय को बोध देने वाला हे; किन्ठु यह ताकिक तथा वैज्ञानिकों की नहीं, केवल श्रद्धालु हृदयों की सम्पत्ति हो सकता है; और ऐसे ही भोले श्रद्धाछु हृदयों की, कि जो तिरु- वहुवर को सजुष्य या महात्मा नहीं साक्षात्‌ श्रह्म का अवतार मानते हैं । तिरुवल्छुवर का पालन-पोषण उनकी शिक्षा-दी क्षा किस प्रकार हुई, उनका वालपन तथा उनकी किशोरावस्था किस तरह वीती यह सब यातें उनके जीवन की अन्यान्य घटनाओं की तरद काल के आवरण में ढकी हुई हैं। सिफ़ें इतना ही लोगों को मालूम है कि वह मयलापुर में रहते थे और कपड़े घुनने के काम को अधिक निर्दोष समक जुलादा-दत्ति से अपनी शुदार करते थे । वहीं, मयलापुर में, एलेलिशिन्नन नाम का एक अमीर समुद्र पर से श्दे




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