प्रतिध्वनि | Pratidhvani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ गूदढ़ साई
लौटते हुए मोहन ने उसे दख कर पुकारा ! श्रीर वह लौट
भी श्राया ।
“मोहन दर
“तुम आजकल श्ाते नहीं ।””
“तुम्हारे बाबा बिगढ़ते थे ।”
“नहीं; तुम रोटी ले जाया करो ।””
“भूख नहीं-लगती |”
“बच्छा कल ज़रूर आना; भूलना मत !''
इतने ने एक दूसरा लड़का साइ का गूदड़ खींचकर भागा ।
गूदड़ लेने के लिये साई उस लड़के के पीछे दौड़ा । मोहन खड़ा
देखता रहा, साई आँखों से ्योमल हो गया ।
चौराहे तक दौड़ते-दौड़ते साई को ठोकर लर्गा, वह गिर
पड़ा सिर से खून बहन लगा । खिभाने के लिये जो लड़का
उसका गूदड़ लेकर भागा था वह डर से ठिठक रहा । दूसरी
बोर से मोहन के पिता ने उसे पकड़ लिया, दूसरे हाथ से साई
को पकड़ कर उठाया । नटखट लड़के के सर पर चपत पढ़ने
लगी; साई उठ कर खड़ा हो गया ।
मित मारो; मत मारो चोट आती होगी !' साई ने कहा;
और लड़के को छुड़ाने लगा ! मोहन के पिता ने साई से पूछा;--
“तब चीथड़े के लिये दौड़ते क्यों थे ?””
सिर फटने पर भी जिसको रुलाइ नहीं आई थी; वही साई
जड़के को रोते देख कर रोने लगा । उसने कहा;--“बाबा मेरे
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