आधुनिक विचारधारा | Adhunik Vichardhara

Adhunik Vichardhara  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रूसोफे विचार दर थे सं अस्िव्वद्दीन दो जाते हैं 1? रूसो पाचीन नैमर्गिक स्वतन्त्रताकी प्राप्ति सम्मय नहीं समइता था । परंतु एक उदय नेंतिक नागरिक स्वतन्यताकी प्रासि सम्मप मानता था 1 इसके मतालुसार प्नागरिफकी सभा दी नियमनिर्णयदी अधिकाशिणी है; प्रतिनिधि सभा नी । नियमोगों पार्यास्यित बरनेके लिये कार्य लिका दोती है। कार्य- पादिया नागरियोंती समादे प्रति पूर्ण उनरदायी होती दै। यदद कार्ययादिका ही सरकार होती है।? रूगोफे मतानुसार ऐसा जनयाद अगने सस्ते स्थाप्री सतकताफी अदा रगयता दै। यद्यपि ऐसे लनवादकों सदा दी खतरा रददता था। उसका आदर्श याक्प था पं सातरनार म्वतस्त्रताकों दास्ति पूर्ण दासत्वसे अच्छा समझता हूँ ।” ऐसे नागण्कि दी इस व्यरस्थाकों स्थायी यना सकते है 1” रूसोका यह ऐतिहासिक थाकय है कि 'जनवाणी हो देवयगी है।' उसने सामान्य इस्ठाकों निरपेश) अंदेय, अधिमारय) स्थायी एवं रात्य माना है । उसने दवाच्सकी 'निरपेशता' और लाक- की 'जनम्यीकृति” का मिश्रण किया दै । उसने दाव्सरी निरपेक्षताको जनवादी रूप और लाककी जनस्वीरतिकों संकिय रूप दिया । रूसोकी पुस्कोंसे क्रान्तिकी एवाला घघक उठी, परतु बदद स्वयं क्रास्तिकारी नई था । उसने १७५२ के अपने एक भाषणरम कद्दा कि '्क्रास्तिको उतना ही भयानक मानना चाहिये जितना कि उन घुसाइयेकि--जिन्हें क्रान्ति दूर करना चाहती है ।* उसने जेनेवाके नागरिकॉंकी लिखा था कि “आप स्वतन्त्रता अवश्य प्राप्त कीजिये; परतु मानव- इत्याके मुकाबिले दासताकों पसंद कीजिये ।* नियम बनानेका कार्य किसी ाष्ट्रके सम्पूर्ण नागरिकॉंद्वारा दो सकना सम्भव नहीं होता । जनताइ)रा निर्वाचित प्रति- निधियोद्वारा दी बद्द सम्भव दोता है । अतः प्रतिनिधिसमाका विरोध भी रूसोका अयौक्तिक दे । “मय समानने व्यत्तिकों दुखी अनैतिकः व्यमियारी बनाया! यदं भी रूसोकी घारणा भ्रान्तिपूर्ण दे । विशिष्ट विचारशीछ लोग ही मार्गदर्गक हो सकते हैं । राब्सपीयरने रूसोको 'राउयक्रान्तिका देवता” घोषित किया था। रूसी ब्यतिवादका समर्यन करते हुए, पूर्ण अफानकतायादी स्वतन्त्रताका समर्थक बन जाता! है और सम्य समाजका कट्टर विरोधी प्रतीत दोता है | घदद स्वतन्त्रता) नैतिकता एवं समाजका विरोध मानता था । इसी आधारपर फ्रांसीसियीनि तत्कालीन समाजका विरोध किया; व्यक्तिगत सुरक्षाके लिये संघर्ष किया और क्रास्तिके पश्चात्‌ राष्ट्र सभा की घोषणा हुई । यदद विचारधारा मविष्यके व्यक्तिवादियोंकी प्रप्ठभूमि बनी; क्योंकि ब्यक्तिवादी भी स्वतन्त्रता तथा समाजवा परस्पर विय्रोध मानते थे । बाकंरने रूसोके लेखकों «ब्यक्तिवादका माण” कद्दा था» परंतु अन्यत्र रूसो अधि- नायकदादक[ सी समंयंक प्रतीत दोठा दे। जेंसा पहले दिश्लाया जा -चुका है, कि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now