जैन संप्रदाय शिक्षा | Jain Sampradaya Shiksha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
768
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' प्रथम अध्याय 1 ण्
महांत्माओं का संग संदेव क्रिया करो । जीवदान और विद्यादान सब दानों से बढ कर हैं ।
कभी किंसी के जीव को मत दुखाओ । सब काम ठीक समय परें किया करो । स्वामी.को
सदेव प्रसं्र रखने का यत्न करो । दियय॑ मनुष्य की आंख खोल देंती है । सजन' विपत्तिमं
भी सरीखे रहते हैं, देखो जाने पर कपूर और भी सुगन्षि देता है तथा सूये रक्त ही उदय
होता है और रक्त ही अख होता है । ब्राह्मण, विद्वान , कंबि, मित्र; पड़ोसी, राजा, ' गुर,
सी; इन से कभी विरोध मंत करो । मण्डढी में बैठकर किसी स्वादिष्ट 'पदार्थ को उठे
मत खाओ । बिना जाने जठ में कभी प्रवेश मत करो । नख आादि को दौंतसे कंंगीः मर्त
काटो | उत्तर की तरफ सिर करके मत सोओ | विद्वान को राजा से भी बढ़ां समझो ।
एकता से वहुत ठाभ होते हैं इस हिये इस के ठिये चेषटा करो | प्राण जाने पर भी धर्म
को मत छोड़ो || के मी लि
यह प्रथम अध्याय का वर्णसमाज्ाय नामक प्रथम प्रकरण समाप्त हुआ |
दूसरा प्रकरण ( व्याकरण विषयक )
बनना” मुनि, 2 रा
इस में कातत्र व्याकरण की प्रथम सच्धि दिखलाई गई हैः
संल्या शुद्ध उच्चारण | अगुद्ध उच्चाण ॥ |... अंथैविवरण |
१ सिद्धो वणसमाज्ञायः | सीद्धा वणो समामनाया ॥ |वर्णसमाश्ञाय अथात् वर्णसेपु
'दाय स्वयंत्तिंद्ध हे अथांत् सा
घित नहीं हैं ||
२ तत्र चतुदेशादों स्वरा: | त्रे तरे चतुरक दश्या दंसवारा उनवर्णीमें पहिठे चोद सर हैं।
३ दश समाना: ॥ दशे समाना ॥| उनमें से पहिे दश वर्णा की
समान संज्ञा है ॥
४ तेषां द्लो द्वावन्योडन्यस-ति खाउ दुधवा वर्णों त- उन समानसंज्ञक वर्णो में दो दो
ब्णों |. सीस वर्णो || वर्ण परस्पर सबणी माने जाते हैं॥
५ पूर्व हुस्र: || पूर्वो हंस्था || उन द्विक वर्णो मे से पूवे २ वर्ण
हु कहाते हैं |
६ परो दीषे; |... पारो दीख़ा | उन्हीं ट्विकों में से पिछड़े वर्ण
» दीप कहाते हैं ॥
' ७ स्व॒रोध्वणवर्जों नामी ॥ सारो बणा विन ज्योनामी | न अवण को छोड कर शेष स्वर
' नामी कहते है |
लामाामवााााा
१, अकार से हैकर हकारपरयत ॥ १. भ से ठेकर औ परत ॥
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