साहित्यकार | Sahityakar

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Sahityakar by सुरेन्द्र नारायण - Sundar Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालरोड में, फूलबाग के निकट ही प्रभात ने एक कमरा छे लिया था। कमरे की लम्बाई-चौड़ाई उतनी ही थी जितने में एक व्यक्ति किसी भी तरह रह सकता है। कमरे में एक चौकी थी । उसपर एक तरफ किताबें रखी हुई थीं । प्रभात कानपुर का ही. रहनेवाला था । पर वह स्नातक कक्षा में सफलता प्राप्त करके अलग रहने लगा । साहित्य-यर्जन में लगा रहता था। लोग हूँसते-उसकी कविताएँ सुनकर । उसपर 'प्रयोगवाद' का असर था और वह 'निराला' के 'मुक्त छत्द' से भी प्रभावित था । बह अपने को प्रयोगवादी नहीं सानता था-संकुचित अर्थ में । वह जानता था कि प्रयोगवाद में दुरूहता भा गयी है, कि बहू साधारण जनता की पहुँच के बाहर है, कि उसे सब में पेठने के लिए साधारणीकरण की आवश्यकता है। पर वह यह भी मानता था कि विशेषकर भारत में, जहाँ प्रजातंत्रात्सक गणराज्य है (जो तर्क पर गाघारित है! ) कविता में बौद्धिकत। चाहिए। बह स्वयं 'मानवताबाद' का समर्थक था । पर यह भी सानता था कि लक्ष्य तक हम छोटी पगडंडियों पर चलफर भी पहुँच सकते हैं। गर्थातु यदि 'प्रयोगवाद” सत्य की प्राप्ति का एक संकीर्ण रास्ता है तो भी उससे जीवन के आसार प्राप्ठ किए जा सकते




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