आपूर्ण मनोरथ की स्मृति | Apoorn Manorath Ki Smrati

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aapoorn manorath ki smrati by रतनलाल जोशी

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरावली की घौर भापाड की धूप पोष भर माघ का जाढ़ा।. परन्तु दुम्दारा कुछ नहीं । जी नहीं घदराता ॥ ६ ॥ बा स्याढे की घुर घणी जद थे एकोकार । सूँ छिप ज्याय यो थारो सो संसार | उ॥ ज्ञाहि की उस घुर में तुम एकाकार हो जाते दो भर सारा संसार से छिप जाताहै ॥ ७॥ मोद॒ मान सरसावती वे पुन्यूँ रात । थे किरणों मे साथ हे नाचो सारी रात॥ ८॥ आनन्द मना कर हुई पूर्णिमा आती है । तुम किरणों को साथ छेइर रात भर नाचते रदते दो ॥ ८ ॥ थार मीठो वोछणो थारा निरमल मीत । याद घणा दिन लावसी थारो यो संगीत 1 ६॥ तुम्दारी घोली मधुर दै ।. तुम्दारे गीत निर्मल है ।. तुम्दारा संगोत बहुत दिनों तक याद भाविगा ॥ ९ ॥ बैब्यों दरियठ बाग में जमनाजी के तीर. - आख्या मीचूँ मोद में थारी कहें हुसीर ॥ १०॥ न जब मैं यमुना जी के किनारे हरे भरे बाग में बेठा हुआ प्रेम से कांखें घद काता हूँ तब तुम्दरी सुधि भा जाती है ॥ १० ॥




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