आपूर्ण मनोरथ की स्मृति | Apoorn Manorath Ki Smrati

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
1.37 MB
                  कुल पष्ठ :  
97
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरावली की घौर भापाड की धूप  पोष भर माघ का जाढ़ा।. परन्तु दुम्दारा कुछ नहीं । जी नहीं घदराता ॥ ६ ॥ बा स्याढे की घुर घणी जद थे एकोकार । सूँ छिप ज्याय यो  थारो सो संसार | उ॥ ज्ञाहि की उस घुर में तुम एकाकार हो जाते दो भर सारा संसार से छिप जाताहै ॥ ७॥ मोद॒ मान सरसावती  वे पुन्यूँ रात । थे किरणों मे साथ हे  नाचो सारी रात॥ ८॥ आनन्द मना कर हुई पूर्णिमा आती है । तुम किरणों को साथ छेइर रात भर नाचते रदते दो ॥ ८ ॥ थार मीठो वोछणो  थारा निरमल मीत । याद घणा दिन लावसी  थारो यो संगीत 1 ६॥   तुम्दारी घोली मधुर दै ।. तुम्दारे गीत निर्मल है ।. तुम्दारा संगोत बहुत दिनों तक याद भाविगा ॥ ९ ॥ बैब्यों दरियठ बाग में  जमनाजी के तीर. - आख्या मीचूँ मोद में  थारी कहें हुसीर ॥ १०॥ न जब मैं यमुना जी के किनारे हरे भरे बाग में बेठा हुआ प्रेम से कांखें घद काता हूँ तब तुम्दरी सुधि भा जाती है ॥ १० ॥
 
					
 
					
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