बिहार के कटिहार प्रखण्ड में भूमि उपयोग परिवर्तन प्रतिरूप | Bihar Ke Katihar Prakhand Men Bhumi Upayog Parivartan Pratirup

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Bihar Ke Katihar Prakhand Men Bhumi Upayog Parivartan Pratirup  by दीन बन्धु - Deen Bandhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 उच्चतम कोटि को भी नवीन कृषि तकनीकी की सुविधा प्रदान कर उच्च श्रेणी के बदला जा सकता है । सातवें अध्याय में प्रतिदर्श गाँवों के भूमि उपयोग सम्बन्धी समस्याओं का सम्यक अध्ययन किया गया है कटिहार प्रखण्ड के अन्तर्गत आठ ऐसे प्रतिदर्श गाँवों का चयन भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि विशेषताओं को ध्यान में रखकर किया गया है जिससे निम्न तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है | अधिकांश गाँवों में कृषित क्षेत्र का विकास अपनी चरमावस्था पर पहुँच चुका है , गॉँवों में कृष्य-बंजर (परती, उबड़, खाबड़, बीहड़, चारागाहों, झाड़ियों एवं दलदली क्षेत्र आदि) का क्षेत्रफल उत्तरोत्तर हासोन्मुख है जबकि कृषि अप्राप्य भूमि का क्षेत्रफल कम: बढ़ रहा हे । बाग-बगीचों का क्षेत्र विस्तार सिकुड़ता जा रहा है । यदि गाँवों में इस हरीतिमा के सिकुड़ाव को न रोका गया तो निकट भविष्य में पर्यावरण के सन्तुलन में गम्भीर संकट उत्पनन हो जाने की पूर्ण संभावना है । सिंचाई एवं नई कृषि पद्धतियों के विकास के साथ- साथ दो फसली एवं बहुफसली क्षेत्रों में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है । चयनित गाँवों में भी फसल प्रतिरूप के अन्तर्गत तेजी से परितरवन हो रहा है । अध्ययन क्षेत्र में भदई, अगहनी एवं गरमा फसलों में धान की खेती पर्याप्त क्षेत्रों पर हो रही है । अत. इसके अन्तर्गत क्षेत्र का विस्तार अब बहुत ही मन्द गति से हो रहा है । भदई मौसम में मक्के और ज्वार-बाजरे के कृषि में भी हास देखने को मिला । रबी फसल में गेहूँ, दलहन, तिलहन तथा हरी-साग- सब्जियों के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार तेजी से हो रहा है । रबी की ही भॉति गरमा फसलों के अन्तर्गत दलहन एवं हरी साग-सब्जियों का विस्तार सिंचाई की सुविधा के फलस्वरूप तेजी से हो रहा है । गैर आबाद गाँवों में भूमि उपयोग प्रतिरूप में परिवर्तन का प्रतिशत आबाद गाँवों की तुलना में कम है । अधिकांश चयनकृत गाँवों में पारम्परिक कृषि की प्रधानता पाई जाती है । कृषकों की गरीबी, अशिक्षा आदि के कारण नई कृषि पद्धतियों के क्किस को पर्याप्त अक्सर नहीं मिल पा रहा है । कृषि में खाद्यान्‍न फसलों की प्रधानता है , जो वास्तव में जीवन- निर्वाहक कृषि का. एक अंग है. । कृषकों को व्यापारिक स्तर भी देने की आवश्यकता




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