प्रतीक नाटकों का उदभव और विकास एक अध्ययन | Pratik Natakon Ka Udbhav Aur Vikas Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
64 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अति में नमस्कार द्वारा राजा (वैश्वानर अत) की उसके अतुगासियाँ सहित
पुज्ज्वलित करता ई जिस ऑग्नि का' प्रतीक (रूप) थी से सना' इुआ है | रुक भिन्न
स्थत पर * वि सातुना' पृथिवी सम्र उवी पृथु प्रतीकमध्यैथे आसन: ** आया है
जिसका' तात्पर्य यह है कि “पृथ्वी कै विस्तृत अहुण्गों कै ऊपर आन प्रज्ज्वलित
हँती है । इस स्थल पर प्रतीक शब्द का अर्थ प्र है । इसी पील्ति का' भाष्य
करते हुए सायएापचार्य ने लिखा है --. तथारिन: पृ विस्तीएा प्रतीक पुथिव्या
अवयवमु |
इसी प्रकार तदुभिन्न कई स्थलों पर कृमश: झुषरे, शरीरर रूप
आदि थर्थी मैं थी प्रतीक शब्द ऋग्वेद मैं प्रयुक्त हुआ है ।
ब्ाह्मण न्थॉपिंप्रतीक कर प्रयोग
सािता' कै बाद ब्राह्मण ग़न्थीं मैं भी प्रतीक शब्द का' प्रयोग कई
स्थल पर हुमा है - शांख्यायन ब्राह्मण मैं रक स्थल पर प्रतीक * शब्द संकेत”
या चौतक अर्थ मैं प्रयुक्त हुआ है-- 'विभाक्तिभि: प्रयाजाकुथाजा न्यजत्यर्तवी वे «
प्रयाजातुयाजा' ऋतुम्य रे न॑ तत्समाहरत्यग्र आयाएिद वीतवैे हम दूर्त वुएरी महा रनना
$रन: समिध्यते पस्न्वुनाणिग जड०्घनदर्ते! स्तौर्म मनामहै ग्रायो मत्याँ दुव, इत्वैता
सामु्चाँ प्रतीकानि, ,.,...... **. इस स्थल पर प्रयुक्त प्रतीक शब्द ऋवाओँ कै
प्रतीक अथाति संकेत या' चाौतक के रुप मैं प्रयुक्त हुआ हैं । इसी ब्राह्मण में एक अन्य
स्थल पर भी इसी अर्थ मैं प्रतीक शब्द का' प्रयौग हुआ है ।
7 ऋग्वेद सकता उढउदाइाएएएएएएएएएएएपदपपकलननललनननानना
१, कंग्वैद साँहिता' - ७1३51
श, ऋग्वैद - १०।८८। १६ 'यावन्मार् उणसी न प्रतीक, सुपएयाँ ३ वसतै माता रृश्व:
अत जब तक वायु उथथा' के सुख की नहीं ढक लैता” वहां सुब अर्थ मैं ।
₹ ऋग्वैद -स आइती विरौचते सनी कैन्यी गिरा स्रुवा' प्रतीकमज्यते “ ११। ११८।
शरीर बर्थ मैं ।
४; दग्वैद - १० ११८1८
४: शाँख्यायन ब्राह्णण' “ १1४
हूं. वहीं, ७1४
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