प्रतीक नाटकों का उदभव और विकास एक अध्ययन | Pratik Natakon Ka Udbhav Aur Vikas Ek Adhyayan

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Pratik Natakon Ka Udbhav Aur Vikas Ek Adhyayan  by ओंकारनाथ पाण्डेय - Onkarnath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अति में नमस्कार द्वारा राजा (वैश्वानर अत) की उसके अतुगासियाँ सहित पुज्ज्वलित करता ई जिस ऑग्नि का' प्रतीक (रूप) थी से सना' इुआ है | रुक भिन्न स्थत पर * वि सातुना' पृथिवी सम्र उवी पृथु प्रतीकमध्यैथे आसन: ** आया है जिसका' तात्पर्य यह है कि “पृथ्वी कै विस्तृत अहुण्गों कै ऊपर आन प्रज्ज्वलित हँती है । इस स्थल पर प्रतीक शब्द का अर्थ प्र है । इसी पील्ति का' भाष्य करते हुए सायएापचार्य ने लिखा है --. तथारिन: पृ विस्तीएा प्रतीक पुथिव्या अवयवमु | इसी प्रकार तदुभिन्‍न कई स्थलों पर कृमश: झुषरे, शरीरर रूप आदि थर्थी मैं थी प्रतीक शब्द ऋग्वेद मैं प्रयुक्त हुआ है । ब्ाह्मण न्थॉपिंप्रतीक कर प्रयोग सािता' कै बाद ब्राह्मण ग़न्थीं मैं भी प्रतीक शब्द का' प्रयोग कई स्थल पर हुमा है - शांख्यायन ब्राह्मण मैं रक स्थल पर प्रतीक * शब्द संकेत” या चौतक अर्थ मैं प्रयुक्त हुआ है-- 'विभाक्तिभि: प्रयाजाकुथाजा न्यजत्यर्तवी वे « प्रयाजातुयाजा' ऋतुम्य रे न॑ तत्समाहरत्यग्र आयाएिद वीतवैे हम दूर्त वुएरी महा रनना $रन: समिध्यते पस्न्वुनाणिग जड०्घनदर्ते! स्तौर्म मनामहै ग्रायो मत्याँ दुव, इत्वैता सामु्चाँ प्रतीकानि, ,.,...... **. इस स्थल पर प्रयुक्त प्रतीक शब्द ऋवाओँ कै प्रतीक अथाति संकेत या' चाौतक के रुप मैं प्रयुक्त हुआ हैं । इसी ब्राह्मण में एक अन्य स्थल पर भी इसी अर्थ मैं प्रतीक शब्द का' प्रयौग हुआ है । 7 ऋग्वेद सकता उढउदाइाएएएएएएएएएएएपदपपकलननललनननानना १, कंग्वैद साँहिता' - ७1३51 श, ऋग्वैद - १०।८८। १६ 'यावन्मार् उणसी न प्रतीक, सुपएयाँ ३ वसतै माता रृश्व: अत जब तक वायु उथथा' के सुख की नहीं ढक लैता” वहां सुब अर्थ मैं । ₹ ऋग्वैद -स आइती विरौचते सनी कैन्यी गिरा स्रुवा' प्रतीकमज्यते “ ११। ११८। शरीर बर्थ मैं । ४; दग्वैद - १० ११८1८ ४: शाँख्यायन ब्राह्णण' “ १1४ हूं. वहीं, ७1४




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