सिपाही विद्रोह या सन सत्तावन का ग़दर | Sipahi Vidroh Ya San Sattawan Ka Gadar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
542
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आग केसे ठगी 0 ७
की # ७ कखि के अर नर री धर लात भा! िद 2 ५४ कि भा धिा निचली री
प्रतापर्सिह के भाई अप्पासाहब; बाजीराव पेशबा के हाथ कद दोकर
केदखाने में पड़े हुए थे । चुर्टिश गवनमेण्ट ने उन्हें कद से छुड़ाकर
सितारे की गद्दी पर बिठा दिया । १८४८ इं० में ही वे भी परलोक-
वासी हो गये । उनके कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने मरने से
पहले शास्त्र की विधि के अनुसार दत्तक-पुत्र प्रहण किया । इधर
गज्य से अछग किये हुए प्रतापसिंह ने भी एक छड़के को गोद लिया
था ; द्रन्तु छार्ड डठहोसी ने इन दोनो ही दत्तक-पुत्रा को नाजायज
ठहरा दिया। फिर कया था, राज्य लावारिस करार दे दिया गया
औरर बटिद राज्य में मिछा लिया गया !.. «
लार्ड डखहौसी की इस चाठ को कोर्ट-आफ-डाइरेकर्स ने भठ
ही मान छिया ; परन्तु प्राचीन सन्धि के अनुसार न चठकर उन्होने
जो सित्रराज्य को ही हड़प कर दिया, इसलिये अँगरेज नीतिज्ञा
और धर्मज्ञों ने भी उनकी बड़ी निन्दा की ।
सितारा के बाद आपने भारत के केन्द्र-स्थठ बुन्देख्खण्ड के
झांसी-राज्य की ओर नजर फेरी । यह राज्य पहले पेदावाओं के
वीन था और बराबर मराठे ही इस राज्य के माढिक रहते आये
थे । झांसी के राजा रामचन्द्रराव से अँगरेजों की स्तन थीं. और
उसके अनुसार दोनों एक दूसरे के साथ भढमनसहत का बताव
करने को बाध्य थे । १८२५ में जब छा कम्बरमियरने भरतपुर के
मजबूत किले पर हमला किया था; उस समय नाना पण्डित नामक
मध्यमारत के एक सरदार ने बड़ी भारी सेना लेकर काठपी नगर
पर हमछ़ा किया था । उस संकट के समय झांसी के राजा ने ४०८८
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