राष्ट्र- भाषा पर विचार | Rashtra - Bhasha Par Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ट्रभाषा
अवाखिर शहद मुहम्मदशाही से इस 'छसरें-तलक इस फ़न में
अवसर सशाहीर शुद्मरा झरसा* सें झाए और अकसाम> संजमात
को जलवे में छाए हैं, मिग्ठ दर्द, मज़द्दर, फ़र्ाँ -.” ( प्र० ४७) |
सोलाना आगाइ ने 'ससनवी णुलज़ारे इदक' की रचना सन् १९११
हि० में की अथात् सेयद इंशा से १९ व्पे पहले अपनी मसनवी में उदू
की उत्पत्ति की उक्त सूचना दी । आगाह के कहने से इतना और थी
स्पष्ट हो जाता है कि हो न हो उदू. की ईजाद मुदस्मद्शाह रगोले के
शासन सें ही हुई । इसके पहले मुराल दरबार की हिदी क्या थी उसे
भी छुछ जान छें तो उदू. का भेद खले । अच्छा तो वही आझागाह साहब
फिर हमे छागाह् करते है--
“जब शाहाने दिद इस शुल्जार* जन्नत” नज़ीर को तसखीर*
किए तजी व रोजसरा दुक्खिनी नहज मुद्दावरा हिंदी से तबदील पाने
लगे ता रॉ कि रफ्ता-रफ्ता इस धात से छोगों को शरस आने लगी
और हिदुग्तान मुददद लग जवान हिंदी कि उसे न्नज भापा चोलते हैं
रवाज रखती थी अगर चे छुग़त” संस्कृत इनकी असले उसूल * और
मख़रज ' फ़नन ” * फ़ोरुअ 5 उसूछ है ।” ( प्र० ४६ )
ढ़ के प्रसंग को यहददी छोड़ अब हम थोड़ा यह दिखा देना चाहते
हैं कि दक्षिण का हिदी से वस्तुतः कया संबंध रहा है.। परंतु इस संचंध
पर विचार करने के पूव ही आगादद के एक अन्य कथन पर भी ध्यान
देना चाहिए। आपकों उठ की भाका” साती नहीं । कारण, उन्हीं के
मुँह से सुनिए -
जब जवान फदीम दक्खिनी इस सबब से कि छागे सरकस ४
हुमा, इस असर * में रायज नहीं है, उसे छोड़ दिया ओर मुद्दावरा
बवािथए वपावप पागारणरण
१--प्रतिद्ध। २-परंपस ! देनसेदों । ४ पी | ५नाप्रकाश |
६--उधान | पन--नस्वरगोपमस । ८-अधीन। ९--भाष । १०-पद्धति की
जड़ । ११-स्ोत। १२-फलाओो | १४--अगो; जर्थात् संस्कत भाषा दी
उसकी रोति-नीति और शुषनसति का सूल है। १४--लिखित । १५--परंपरा।
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