श्री धर भाषा कोष | Shri Dhar Bhasha Kosh
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
777
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
इकारान्त वा उकारान्त एवं दकन्त प्रथवा ऋकारान्त धातु के उत्तर कम्म.
चाच्य में ( य; घ्यण ) होजाता है य पम्रत्ययके योग में धातु के इकारादि
अन्त्यप्लर श्राय झादि के रूप में बदलजाता है एवं उपान्त्यका इकारादि
स्वर एकारादि में परिवर्तित दोजाता हे एवं जन, वध धातुकों छोड़ अन्य
घातुका उपान्त्य झ को श्रा होजाता है यथा श्रुन-यलशाव्य, दुहन-यल्दोहा)
क्रमू ने यल्क्राम्य ।
(इ; जि)
घातुके परे मेरणाय में और स्वाये में इ प्रत्यय होता है इस मत्यय्र के होने
में शब्द निष्पन्न नहीं होता है धातु के उत्तर हू प्रत्यय कियाजाय तिसके परे
ौर कोई एक मत्यय करते हैं इ मत्यय के परे धातुके झन्त्य इकारादि के
स्थान में श्राय् इत्यादि एवं उपान्त्य के इकारादि के स्थान में एकारादिं हो-
जाता है परन्तु कभी २ इ प्रत्ययका छोप दोजाता है वा कभी इ मत्ययका परि
वतेन आय से होजाता दे यथा क+इन-तल्कारित, के इन टुल्कारयिता;
चुने-इने-तन्चोरित ।
( स, सन् )
घातुसे परे इच्छाय में स मत्यय होता है इस स प्रत्ययकें करने में भर एक
प्रत्ययका योग होता है स प्रत्ययके परे एकस्चर के सदित धातुके झाद्य अक्तर
की ट्रिसक्ति अर्थात् द्विर्व दोजाता दे एवं ट्रिसक्ति के के को च दोजाना दे
मर ग को ज और मे को व एवं घ को द होता हैं यथा कब स--थालचि
कीर्पा, पान-स--थछानपिपासा) गुपन-स--थान्जुगुप्सा 1
स॒ मत्यपके परे लभः दा, शाप के स्थान में क्रपण: लिए, दित, इप
दजाता दे यथा लग न-स--था न लिप्सा, दा नस न थानदित्सा, बिन
ध्पापनस--यान्वीप्सा |
( य; यू )
घातु के उत्तर पुनः पुनः अयात चारम्वार श्र में य मन्यय दो हैं थे
मरयय के पर एक मत्पय पर होता हैं य मन्पयक परे एकस्टर सिन धासु के
शाोयरगीकी द्रिन भयाव दिस दोनाना हैं एवंड्रिमन्टक के को च इंसजाठा
रैंगकाज औरभ को द एई थे को ये होजाना हैं यथा दीपने यलसाता
देडी पमान इस पे घम्पथ को किसी से स्थरन मे छाप हासन रा
जी
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