भारतीय कलाविद | Bhaartiiya Kalaavida

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Bhaartiiya Kalaavida by जगदीश चंद्र चतुर्वेदी - Jagdeesh Chandra Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्मृति , 12 उन थजा गया। जान से पहल मे डा शमा से भा मिलों। उन्हान मुझे एक मृत्यलान सलाह दो। उन्हांन कहा, बाठमापडू पाटन ओर भाद गाँव (शक्तपुर) के सय्रहालया में जाकर वहाँ प्रम्ता , धातु था काठ-कला की मूर्तियां की सूची अवश्य तैयार करना। श्ाजकन मैं उन कला कृतियों की सूची तैयार कर रहा हूँ जा किसा समय भारत से बोहर चली गई। हा सक तो तुम सेणाल की ऐसी ही कालाकृतियों की विवरणात्पक सृचियाँ तैयार करना। ” मैने उनकी मृल्यवान्‌ सलाह का कार्यीस्वित थी बड़े श्रम से कर लिया। आधार विदेशी सग्रहालयों क केरलागि, पुस्तक और पत्र -पर््रिकाएँ थी, लेकिन आज इॉ0 शर्मा कहाँ हैं? वे अपने अाराध्य शिव मे विलीन हो चुके है। मं पास उनकी एक अति दुर्नभ स्पृति शेष हैं। उनका उस संमय का लिन, जब से भारतीय कला की प्रदर्शनी लंकर ' मान्ट्यल' गए थे। उनके तथा किसी अम्य विद्वान के बीच में भगवान शिव की एक कलापूर्ण प्रस्तर प्रतिमा है। 'डॉ0 'र्मा का ' इशिड्याज कन्ट्रीब्यूशन रू वर्ल्ड था एण्ड कलचर' (मद्रास) में प्रकाशित एक ननेख ' शिव शाइकप्स आफ नेपाल' घहाँ मेरा पार्ग दर्शक बना था। सॉए बीए एम0 शर्मा और 'डॉ० विनाद प्रकाश द्रिंवदी से मेरे सम्बन्ध प्रगाढ़ होते गाए। इन लोगी से सुझो अपने लखों के ' ऑफप्रिट्स' देने की कृपा भी को। यदि यह विद्ोन जीलिंश रखते तो भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास क धशण्डार को ने जाने कितनी मणियोँ दे जाते। दुःख ता यही है कि दोनो का अकिस्मिक, निधन हो गया। ' ये गुच्छे तो बिना खिंले तो नहीं रहे पर दिकू दिगम्स में अपनी पूरी सुरभि शिखेरे लिना ही चले गए। इन गम्भीर जिम्मेदारियों के बाद भी इतना शाधपूर्ण, श्रम साध्य लेखन!' सन्‌ 1975 में मुझे भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद, नई दिल्‍ली न सीभियर रिसर्च फीलोशिप दी। संस्था के नियमों के अनुसार मुझे किसी मान्य सस्था से सम्बद्ध होने के लिए कहा गया। मैं भारतीय विद्या सस्थान (इंस्टीट्यूट आफ इण्डालाजी।, दरियापंज से सम्बद्ध हो गया। संस्थान क॑ सस्थापक डॉ धर्मेन्द्र नाथ शास्त्री ने वहीँ इस शर्त पर आवास दने की कृपा की कि संस्थान के पी एन0 'डौए कं उम छात्र छात्राओं को, जिनका विषय कला से सम्नन्धित है, शोधकार्य में सहायता दूँगा। भारतीय बिंद्या संस्थान अकसर अपने यहाँ किसी विद्वान के व्याख्यान का आयोजम करती थी और उसमें दिल्‍ली के गण्यमान्य विद्वानों तथा बुद्धिजीविया को आर्मान्त्रत करती थी। अगला व्याख्यान श्रीकृष्ण जन्माप्टमी पर आयाजित हुआ। वक्ता थे राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रख्यात्‌ विद्वान 'डॉ0 प्रियतोघ बैनर्जी। पिछले दिनो इसी विषय ' श्रीकृष्ण और भारतीय कला' पर ननका एक और विशद् ग्रथ भी राष्ट्रीय कक विभाग द्वारा




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