मोहन मोहिनी | Mohan Mohinii

Mohan Mohinii by बिंदु जी महाराज - Bindu Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्त श मे किया जिसने भजन नक्श है दिल पे तस्वीर घनश्याम की न यों घनश्याम तुम को दुख से न यज्ञ साधन न तप क्रियायें न शभ कम धर्मादिघारी हूँ भगवन्‌ न क्यं झाजाय रिवचिकर ख़द तोमस्पडदह्टेनतोरंग हे, भ्प हे पुकार सुन लो ज़रा काज़ीकामली वाले प्रभो मुझको सेवक बनाना पड़ेगा प्रभो अपने दरबार से अब न टालो प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर पाप लाखों के जो त हर गया ग्रभो दो वह पीड़ामय प्यार प्रेम ही अपना है सिद्धान्त पतभड़, न रिजाँ; है 'ब-च' चबंशी वाल क्यां नहीं आते हमारी आह पर बंशी वाले हमारी रबर लेना बता ऊँ: तुम्हें श्याम में क्या ? कि क्या हूँ बठे हो कहाँ रूठ के न्रजघाम बसेया बेकार कोई करता है क्यों तक़रार चह दिल ही नहीं जिस दिल में विरही की विरह वेदना में सुनकर भी वही प्यारा है जिसका हुस्न घहुत दिन से तारीफ़ सुनकर तुम्हारी वो जानें श्याम की नज़रो के मजे बसहु मन मनमोहन के पाँव वो खुश क्रित्मत है जिसका का भूला सिय साजनकारी भटका दे बहुत मन माया में ४६. श््दे ६७ प्‌ पद ५८८ १९४




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