लोकनायक मुरलीधर व्यास स्मृति ग्रन्थ | Loknayak Murlidhar Vyas Smrti Granth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भवानी शंकर व्यास 'विनोद' - Bhawani Shankar Vyaas 'Vinod'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कसी छात्र को निकायत नहीं को । उनकी स्वय की वाय प्रणाली ऐसी थी कि
शकायत का अवसर था ही नहीं सकता था | छात्र स्वत ही अनुवासित थ
अत स्वत स्फूत प्रेरणा से काय करते थे । अधिकारीगण भी आश्वस्त थ कि
यासजी के रहत अनुशासन वी कोई समस्या नहीं आ सकती ।
अपने सुगठित शरीर एवं आकपक व्यवितत्व से उन लिना भी व लोगा को प्रभावित
वरते थे । छानाचय म रहते हुए उ हान लाठी ब तलवार चलाते का अम्यास
किया । कुइती में दलता प्राप्त की तथा तरन मे कुशलता हासिल वी । व हर
काय विशिष्ट थोग्यता की सीमा तक क्या करत थे । लाठी चलात समय वे
जकेले होते तथा बीस पच्चीम छात्र सामने होत । मदकों छू थी कि वे व्यास
जी पर लाडिया का मनचाहा वार करें पर व्यासजी थ कि चनीवार लाठी
चलाकर सबका परास्त कर देत थे । जय साइपिल चलाने वी कला सीखी ता
सनम भी विधिष्टता का प्रदशन ही किया । व एक साथ 14-14 छात्रा को
बिठा कर साइविल चला सकत थे । आग पीछे की सूटियोपर आग पीछे के
मडगाड़ो पर हुष्डल पर कथा पर एक दूसर के सहार से खडे बढ़े 14 छान एवं
ही साइकिल पर चलते तथा ऊपर बढ़े छान जयहिद बालते । बड़ा ही रोचक
दइय बनता था ।
“यासजी कुदती के भी शौकीन थे । सिने भिन प्रकार के दावपेच सीखना
नियमित दड़ बठकें लगाना अखाड़े मे साथिया को ललफारना आदि उनका
पियमित क्रम था । एक बार उनकी कुइती अपने से दुगुन वजन और डील डील
के नडके स रख दी गई । लड़का हिंगनघाट का ही था । वर्घा मे आयोजित इस
कु्ती न आकपण और कुतुहुल का एक ऐसा वातावरण वनाया कि सकहा लोग
कुदती देखन एकत्रित हो गये । छोग सोचत ये कि “यास जी जवदय हारेंगें क्योकि
कुश्ती जोड़ वी नहीं थी । वरावरी वी जोड़ होती तो बात और थी पर यहा तो
इुगुने वजन और डोल-डौल का पहलवान सामन था । कुइती शुरू हुई और ज्यो
ज्या दाव पेच टान कछगे छोगो का विस्मय भी बढ़ने लगा । ्यासजी अनेक हाव
पचा मे सिद्धहस्त थे । अत मौका पाकर उ हाने विपक्षी पहलवान को ऐसा उठा
बर फ्का वि छोग देखते ही रह गय । इस कुइ्नी से व्यासजी का आत्म विश्वास
जौर अधिक वट गया । आगे जाकर जीवन म उहें कई क्षेत्र मे कई भारी भरकम
पहल्वाना से जूकना पड़ा तथा लाग जानते है कि व्यासजी ने कभी मदान नही
छोड़ा ।
उगते सूरज बी साख 15
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