विज्ञान परिषद् का मुखपत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhpatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
151 MB
कुल पष्ठ :
624
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तथा श्रत्य कोमल बरीर वाले कीड़ों को इसी के द्वारा
नष्ट किया जाता है ।
(स) पाइरेथूस--सदियों से ही सूखे पाइरेथम
फूलों का प्रयोग कीट-विनाशक के रूप में होता रहा
है । इससे पौधे दालमाटिया; जापान तथा केन्या में
भ्रधिक मात्रा में पाये जाते हैं । इनके फूलों को एक
विदिष्ट वृद्धिस्तर पर तोड़कर सुखा' लिया जाता है
. और भिन्न-भिन्न भ्रवस्था में प्रयोग किया जाता है ।
यह पाइरेथिन 1 तथा पाइरेथिन 11 का मिश्रण है
जोदो श्रम्लों तथा कीटो-एलकोहल की देन है ।
इसको काबंनिक विलेयकों में घोलकर छिड़का जाता
है। नवीन संइ्लेषित कीट-विनाश्क एलथिन इसी
श्रणी का कीट-विनाशक है । पाइरेथिन गाढ़े तेल के
रूप में पाया जाता है । इसका प्रयोग मच्छर, मकखी,
खटमल तथा श्रन्य घरेलू कोटों को मारने के लिए
किया जाता है । मनुष्य तथा पशुश्रों पर इनका कोई
प्रभाव नहीं पड़ता ।
(द) रोटीनोन--पठिचमी राष्ट्रों में (ईस्टइण्डीज,
दक्षिणी भ्रमेरिका) तमाम ऐसे पौधे पाये जाते हैं
जिनसे रोटीनोन निकाला जाता है । ये पौधे शीतोष्ण
तथा समशीतोष्ण जलवायु में सुगमता से पनप सकतें
हैं। डेरिस, लास्कोकारयस, टेफ़रोसिया, मन्दूलिया
तथा मिलेटिया श्रेणी के पौधों की तमाम किसमें इस
कार्य के लिए प्रयुक्त होती हैं । यह रंगहीन यौगिक है
जो हवा तथा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर अपनी
विषालुता खो बेठता हैं । डेग्यूलीन, सुमेट्राल; टाक्सी-
फरॉल तथा सेलाकोल भी इसी समूह के कीट-
वितादक हैं । मानव तथा पशु-पक्षी के लिए हानि-
कारक न होने के कारण यह इस काय॑ के लिए
प्रयोग में लाया जाता है । चूणंरूप में रोटीवोन का
प्रयोग बेण्टोनाइट तथा ताल्क के साथ मिलाकर
खाने वाली फसलों तथा साग-सब्जियों पर लगे कीड़ों
को मारने के लिए किया जाता है ।
इनके अतिरिक्त हेलेबोर (नि 1६७०४८),
१०६ )
विज्ञान
साबाडिला (529807112), किफ्धए9 5 और
क्वासिया ((0०४५६1५) . तथा... पेचोराइजस
(९िघ८0प्रधए05) जाति के पौधे भी कीड़ों को
मारने के लिए काम में लाते हैं ।
संश्लिंष्ट काबंनिक कोट-विनाशक'
विगत कुछ वर्षों में बहुत से नवीन श्रौर प्रभाव-
वाली कीट -विनाशकों का रासायनिक संझ्लेषण किया
गया है भर उन्हीं का सावंभोमिक प्रयोग हो रहा है ।
(क) डी. डी. ठी.--इसका रासायनिक नाम
डाइक्लोरो-डाइफिनाइल ट्राइक्लोरेइथेन है । सर्वप्रथम
इसका संदलेषण १८४७६० में जीड्लर द्वारा किया गया
था । यह एक सफेद रंग का' रवेदार यौगिक है जो
जल में अ्रविलेय है तथा काबंनिक विलायकों में सुग-
मता से घुल जाता है । व्यावहारिक मात्रा में इसका
उत्पादन गंधकाम्ल की उपस्थिति में क्लोरल एवं
क्लोरोबेन्जीन के द्वारा किया जाता है । इसका रासा -
यनिक सुत्र (1, (1. (0८५01), है ।
डी. डी. टी, काबंनिक विलायकों में घोलकर,
विलथन रूप में लकड़ी के पॉलिस में तथा श्रन्य सूखे
पदार्थों के साथ वरूण रूप में प्रयोग किया. जाता है ।
सधारणतया ५ प्रतिशत साव्दता का डी. डी. टी,
घरेलु प्रयोग में लाया जाता है । इसी से श्रधिक सान्द्र
डी. डी. दी. या तो पेड़ों प्रयोग पर किये जाते
हैं या उन स्थानों पर छिड़कने के लिए जहाँ न तो
पथुम्नों का चारा है श्र न गोदाम श्रादि । इसके
भ्रतिरिक्त पाइरेथूम तथा कार्बनिक थायोसायनेट में
घोलकर भी अ्रत्यन्त प्रभावित स्थातों पर डी. डी, टी.
का छिड़काव किया जाता है ।
डी. डी.टी से सम्बन्धित सेथॉक्सिक्लोर जो
भौतिक तथा रासायनिक गुणों में इसी के समान है
कोट-विनाशक के रूप में प्रयुक्त होता है। ठी.डी.ई
भी इसी तरह का कीट-विनाशक पदार्थ है जिसे कुछ
विदिष्ट कीड़ों को मारने के लिए' प्रयोग किया
जाता है ।
|. जनवरी, फरवरी १६६४
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