विज्ञान परिषद् का मुखपत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhpatra

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Vigyan Parishad Ka Mukhpatra by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तथा श्रत्य कोमल बरीर वाले कीड़ों को इसी के द्वारा नष्ट किया जाता है । (स) पाइरेथूस--सदियों से ही सूखे पाइरेथम फूलों का प्रयोग कीट-विनाशक के रूप में होता रहा है । इससे पौधे दालमाटिया; जापान तथा केन्या में भ्रधिक मात्रा में पाये जाते हैं । इनके फूलों को एक विदिष्ट वृद्धिस्तर पर तोड़कर सुखा' लिया जाता है . और भिन्न-भिन्न भ्रवस्था में प्रयोग किया जाता है । यह पाइरेथिन 1 तथा पाइरेथिन 11 का मिश्रण है जोदो श्रम्लों तथा कीटो-एलकोहल की देन है । इसको काबंनिक विलेयकों में घोलकर छिड़का जाता है। नवीन संइ्लेषित कीट-विनाश्क एलथिन इसी श्रणी का कीट-विनाशक है । पाइरेथिन गाढ़े तेल के रूप में पाया जाता है । इसका प्रयोग मच्छर, मकखी, खटमल तथा श्रन्य घरेलू कोटों को मारने के लिए किया जाता है । मनुष्य तथा पशुश्रों पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता । (द) रोटीनोन--पठिचमी राष्ट्रों में (ईस्टइण्डीज, दक्षिणी भ्रमेरिका) तमाम ऐसे पौधे पाये जाते हैं जिनसे रोटीनोन निकाला जाता है । ये पौधे शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु में सुगमता से पनप सकतें हैं। डेरिस, लास्कोकारयस, टेफ़रोसिया, मन्दूलिया तथा मिलेटिया श्रेणी के पौधों की तमाम किसमें इस कार्य के लिए प्रयुक्त होती हैं । यह रंगहीन यौगिक है जो हवा तथा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर अपनी विषालुता खो बेठता हैं । डेग्यूलीन, सुमेट्राल; टाक्सी- फरॉल तथा सेलाकोल भी इसी समूह के कीट- वितादक हैं । मानव तथा पशु-पक्षी के लिए हानि- कारक न होने के कारण यह इस काय॑ के लिए प्रयोग में लाया जाता है । चूणंरूप में रोटीवोन का प्रयोग बेण्टोनाइट तथा ताल्क के साथ मिलाकर खाने वाली फसलों तथा साग-सब्जियों पर लगे कीड़ों को मारने के लिए किया जाता है । इनके अतिरिक्त हेलेबोर (नि 1६७०४८), १०६ ) विज्ञान साबाडिला (529807112), किफ्धए9 5 और क्वासिया ((0०४५६1५) . तथा... पेचोराइजस (९िघ८0प्रधए05) जाति के पौधे भी कीड़ों को मारने के लिए काम में लाते हैं । संश्लिंष्ट काबंनिक कोट-विनाशक' विगत कुछ वर्षों में बहुत से नवीन श्रौर प्रभाव- वाली कीट -विनाशकों का रासायनिक संझ्लेषण किया गया है भर उन्हीं का सावंभोमिक प्रयोग हो रहा है । (क) डी. डी. ठी.--इसका रासायनिक नाम डाइक्लोरो-डाइफिनाइल ट्राइक्लोरेइथेन है । सर्वप्रथम इसका संदलेषण १८४७६० में जीड्लर द्वारा किया गया था । यह एक सफेद रंग का' रवेदार यौगिक है जो जल में अ्रविलेय है तथा काबंनिक विलायकों में सुग- मता से घुल जाता है । व्यावहारिक मात्रा में इसका उत्पादन गंधकाम्ल की उपस्थिति में क्लोरल एवं क्लोरोबेन्जीन के द्वारा किया जाता है । इसका रासा - यनिक सुत्र (1, (1. (0८५01), है । डी. डी. टी, काबंनिक विलायकों में घोलकर, विलथन रूप में लकड़ी के पॉलिस में तथा श्रन्य सूखे पदार्थों के साथ वरूण रूप में प्रयोग किया. जाता है । सधारणतया ५ प्रतिशत साव्दता का डी. डी. टी, घरेलु प्रयोग में लाया जाता है । इसी से श्रधिक सान्द्र डी. डी. दी. या तो पेड़ों प्रयोग पर किये जाते हैं या उन स्थानों पर छिड़कने के लिए जहाँ न तो पथुम्नों का चारा है श्र न गोदाम श्रादि । इसके भ्रतिरिक्त पाइरेथूम तथा कार्बनिक थायोसायनेट में घोलकर भी अ्रत्यन्त प्रभावित स्थातों पर डी. डी, टी. का छिड़काव किया जाता है । डी. डी.टी से सम्बन्धित सेथॉक्सिक्लोर जो भौतिक तथा रासायनिक गुणों में इसी के समान है कोट-विनाशक के रूप में प्रयुक्त होता है। ठी.डी.ई भी इसी तरह का कीट-विनाशक पदार्थ है जिसे कुछ विदिष्ट कीड़ों को मारने के लिए' प्रयोग किया जाता है । |. जनवरी, फरवरी १६६४




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