बृहत्त्कथाकोश भाग 1 | Brihatkathakosh (vol. - I)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राजकुमार शास्त्री - Rajkumar Shastri
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हरिशेनाचार्य - Harishenacharya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चृहत्कयारोश षु
अपन अपने घर चली गई । सभी स्त्रियाँ अपने अपने पतिकें
पास पहुँची और उन्हें विष्णुद्तका वृतान्त सुनाने लगी ।
अपनी अपनी पत्नियोकी वात सूत्कर विचारे अन्धोंके
मनकों वडा आधात लगा । वे घन श्र दृप्टिकें छालचमसे
जल्दी जल्दी दौडने छगें । इस तरह दुखी होकर कुछ कुन्नो में
गिरे, कुछ तालावमें गिरे, कुछ नदियोमे सिरे, कुछ वापि-
काओमे गिरे और कुछ छोटी तलेयोंमे । वृक्ष भर पत्थरोसे
टकरानेंके कारण उनके समस्त अग-भग हो गए और उन
सचनें रौद्र और भातेथ्यानके साथ अशुभ परिणामोसे जीवन-
ऊीला समाप्त कीं । तुष्णावश स्थानश्रष्ट होकर लइखड़ातें
हुए कुछ दुप्ट चरकगतिमे जा गिरे जौर कोई तिर्यव्च गतिसे ।
इस प्रकार यदि चविप्णुदत्तने घन और दृष्टि प्राप्त की तो
दूसरोने मरकर दुख-परम्परा ! इसलिए ससारमे नि.सन्देह
पुण्यात्मायों गौर पापात्माओका समान प्रयोजन नहीं हू
सकता । पुण्यात्मा अपनी प्रवृत्तिसे सुख प्राप्त करते हे और
पापात्मा दुख ।
इस प्रफार विप्णुद्तरो कथा सम्पूर्ण हुई 1
का
४, सोमदत्त और चिदयुच्चोरकी कथा
मगघ देसमें राजयृह नामक नगर या । वह घन
घान्यसे भरा हुआ था। और पुरवासियोस आकीर्ण था |
उस सगरमें प्रजापाल नामक राजा रहते थ्रे | उन्होंने भपने
समस्त णशु नप्ट कर दिये थे और श्षपनी कीत्िसे मंपर्ण
गगन और पृथ्वी-सण्टलकों घवल कर दिया था । वे प्रजाके
पालन करनेम समर्थ थे और गुणोफे समूद्र थे । इनकी पढट्टानीका
नगमि पानका था जो सुवणके समान उ्ज्चल थी |
उसी नगरमे जिनदास नामके एक सेठ रहते थे । थे
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