आखिर जो बचा | Aakhir Jo Bacha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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बुच्चिबाबू - Buchchibabu
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तिनके का क्या मूल्य ?
पद्चिम में लाल सूरज जम्दाई लेकर दुमरी दुनियां में मूद्धित हो गया तो
उस धातावरण में बचे थे केवल काले बादल जो दिन के साथ लगाव रखते
हुए रात्रि को टटोल रहे थे । तारे डरते हुए से चमक रहे थे । पूछ हिलाते
अजगर सी घुमकर वह छोटो नदी कहीं दूर जा छिपी थी । नदी के किनारे
झाड़ियों के बीच बेठा दयानिधि आकाश की ओर देखकर मन ही मन हंसने
लगा । हवा की एक हल्की सी लहर ने उसके तन को छू कर एक विचित्र
सी अनुसूति दी । प्यास के साथ तन विकसित होता है, तो हवा दवारीर मे
उमंग और उत्साह मर कर रक्त को स्पर्दित करती है और उसे नये नये
मार्गों की भर ले जाती है और अंग मंग में तंद्रा सी छा जाती है, भांसें केवल
देखना छोड़ कर गहराईयों का दर्शन करती हैं ।
पशचिचिम में भरता हुआ लाल घाव, रात्रि का अन्वेषण करने वाले मेघ,
निर्मय होकर चमक रहे नक्षत्र, पूछ दविलाना बंद कर मिश्चल पढ़े अजगर सी
नहर, पर्वि्न भाव से झूम रही झाड़ियां, मुक भक्तिवश हो सीन प्रकृति, उन
सबके साथ वह स्वयं, सभी एकाकार हो उठे थे, क्षण भर के लिए चेतनता
खोकर इस प्रकार जड़ हो गये थे मानो इस चविदव से उनका कोई संबंध ही न
रह गया हो ।
'. *अबेर हो गयी । घर चलो छोटे बादु ।”*
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