साहित्यक समालोचना | Sahityik Samalochna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्चीन्द्रनाथ ठाकुर श्प
छंद्थ के अन्दर प्रतिक्ण जो रूप घारण करते हैं, जिस स्मीवकों
ध्वनित करके उठाते हैं, भाषारचित वही चित्र और वहीं गान
साहित्य है 1
भगवानका आनर्द अ्रछृतिके वीचमें, सानव-चरित्रके वीचमें
अपने को रबये सप्ट कर रहा है । सनुष्यका हृदय भी साहित्यमें
च्पनेको सूजन करनेके लिए, व्यक्त करनेके लिए चेप्रा कर रहा
झै । इस चेप्टाका छान्त नहीं है, यह एक विचित्र चात है । कचि लोग
सानव-दृदयंकी इंस चिरन्तन चेप्राके उपलब्यमसात्र हैं 1
सगवानकी आनन्द्सष्रि अपने अन्द्रसे स्वयं निकल रही है ।
सानंव-द्दयकी आसन्दस्रि उसीकी प्रतिध्वति है । इसी जगत-
सृष्टिके आनन्दमीतकी भार दमारी हृदय-बीणातंत्रीको अहरहः
स्पन्दिति करती है 1 यही जो मानस-सज्ञीत है-सगवानकी सष्टिके
अतिघातमें हमारे अन्दर यही जो स्रिका आावेग है ,--उसीका
'बिकासे साहित्य हैं । संसारका सिश्वास हसारी चित्तवंशी्े कोन
सी रागणीकों बजा रहा है--साहित्य उसी को स्पष्ट करके व्यक्त
'करनेकी चेप्रा करता है । साहित्य किसी व्यक्तिविशेष का नहीं है,
यह रच यितांका नहीं हे--वह तो देववाणी है 1 वाह सृष्टि जिस
प्रकार झपती अच्छाई; घुराई; अपनी असम्पूर्णताको लेकर चिर्-
कालसे व्यक्त होनेकी चेप्टा कर रही है--यह वाणी सी उसी प्रकार
देश-देशसें, मापा-मापामें हमारे अन्तस्तलसे बाहर झेने के लिए
सिरन्तर प्रयत् कर रही है ।
न्नफनिन
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