अपना राज्य | Apna Rajya
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्रान्ति ओर सुधार १३
वाला है । उसमे से झाधा तो बढती हुई जन-सख्या के कारण
साफ ही हो जायगा । अर्थात् बारह प्रतिशत ही उत्पादन बढेगा।
इसमें से गरीबों के पत्ले कितना पड़ेगा, कौन जाने ! इस वारे मे,
जैसा कि श्रीमन्नारायणजी कहते है, इन नौ-दस वर्पों में धनी
श्रौर गरीव के जीवन-मान मे श्रन्तर कम न होते हुए उल्टा
वढता ही जा रहा है । इसलिए गरीवो की गरीवी मिटे बिना वे
इन सुधारों का वहुत-कुछ लाभ न उठा सकेंगे। इन छोटे-मोटे
सुधारों से एक दु ख मिटेगा, तो दूसरा पैदा हो जायगा । झ्रत
दु ख-निवारण का काम क्राति का काम नहीं है । झ्रगर हम इस
काम में पड़े , तो खुद मिट जायेंगे, पर दुख न मिटेंगे । इसलिए
हमे ढुखो की जड़ ही काटनी चाहिए । वर्तमान दु खों की जड़
सदोप झ्राथिक रचना है । इसीलिए हम खेती श्रौर धन बाँठेगे
आर नवीन थ्रर्थ-रचना खडी करेंगे । इतनेभर से ही गरीव
किसानों का उत्पादन एकदम दुणुना हो जायगा । भुमि-मजदूरो
का उत्पादन तो इससे भी शझ्रघिक बढ़ेगा । खेती मिल जाने के
कारण उनके काम का हौसला ही वढ जायगा श्रौर इसीलिए
पाँच वर्पों मे देश का उत्पादन डेढ-दो गुना हो जायगा । ग्रामदानी
गाँवों का उत्पादन एक वर्ष मे दो-तीन युना हो गया, यह तो हम
देख ही चुके हैं। उनका उत्पादन वढा कि फ़िर वे स्कूल, दवाखाने,
तकावी श्रादि सुवारो से भी लाभ उठा सकेंगे । गाँव स्वय ही
स्कूल भ्रौर अस्पताल चला सकेंगे ।
जो स्थिति पंचवर्पीय योजना की है, वही सेवा के श्रन्य कामों
की भी है । ये सारे काम जी-तोड मेहनत से श्रनेक सेवक कर रहे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...