कश्मीर पर हमला | Kashmir Par Hamla
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तूफान आागया श्दे
तुम्हारे लिए वजीर साहब ने नवावा चपरासी के यहा ठहरने का
इतजाम किया है ।” यह नवावा तहसील का चपरासी था । हम गिरते-
पड़ते नवावा के घर पहुचे । यह मकान हमारी कोठी से आधे मील की
दूरी पर एक ऐसी ऊची जगह था, जहा से सारा जहर नजर आता था ।
मेरे बहा पहुंचते ही उसका सब परिवार और थगहर के कई
मुसलमान जो भाग कर यहा आये थे, बाहर निकले और मुझे आदर से
भीतर ले गये । कहने लगें, “तू हमारे नेक हाकिम की स्त्री है । हमारी
आखो में तेरी इज्जत वैसी ही कायम है । घर अपना है--चवैछिये ।”
में अदर गई । कई आऔरतो ने मेरे बच्चो की हालत देखकर आसु वहाये
और हमलावरों को जली-कटी सुनाने लगी । मेने उन लोगों से मेहता
साहव के वारे में पूछा, “वे कहा है ?” वे वेरुखी से वोले, “हमें माछूम
नह्दी कि वे कहा है ।” कुछ देर वाद वहा सुपरिन्टेंडंट पुलिस का अर्दली
शिवदयाल आया । यह वारामूला का रहनेवाला था, हमारी कोठी पर
अक्सर आया करता था । आते ही वह ओम् से मिला । दोनो कुछ
बातचीत करने लगे । मैनें शिवदयाल से पूछा, “भाई, तुम्हे मालूम
है कि मेहता साह्व कहा हैं ? तुम तो तब वही थे, जव वह घर से
बाहर निकले थे।” वह वोला, “वे साहव (सुपरिन्टेंडट पुलिस) के
साथ तेईस सिपाही लेकर हाईस्कूल की तरफ गये हूं। वहा सैनिकों
ने कई दिन पहिले एक तोप गाड रखी है और वे वहा महफूज है।”
इघर बच्चे सर्दी के मारे थर-थर काप रहे थे। यह देखकर नवावा
की औरत नें आग जलाई । मेने वच्चो के गीछे कपडे उतार-उतार कर
उसपर सुख्ययें, अच्छो तरह तो कया सुखते, फिर भी कुछ अन्तर जरूर
हुआ 1
वहा से नहर के जठने का भयानक दृश्य देखकर यही प्रतीत होता
था कि प्रलय हो रही है। चारो ओर हाहाकार मचा हुआ था 1
पहाडियों पर छोग अपने परिवारों समेत भागते नजर जा रहे थे ।
आग की छपटें आसमान से बातें कर रही थी । माकाश घुए से ढक गया
की... अ्यवारपवतन्मीतििले'
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