जैनसिद्धांतदर्पण पूर्वार्ध | Jainsiddhantadarpan Purvardh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jainsiddhantadarpan Purvardh by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नेनसिंडान्त ।' श्ध असिसिसिसिडययससडनसदससयटसस्टयपा शीवीतरागाय नाएः जेनसिद्धात्तद्पण पूवोष, प्रथम अधिकार ( द्व्यसामान्यनिरपण ) महछाचरण, नला वीरलिनेन्ट्र सब मुक्तिमागनेतारपू ! वालम्रवोष॑ना्थ नेन॑ सिद्धान्तदपंण वह्ये ॥ द्व्यका सामान्य क्षण पूर्वोचार्योनि इसप्रकार किया है । गावा--दुपदि दविस्सदि दविदं भ॑ सब्भावे विशभपलाएं। है णह भीवो प्रोगल घम्माधम च काल च १ तिक्ाछे भ॑ सच्चे पढ़दि उप्पादवयधुवेहिं ( एणपज्ञायसहादं जगादि सि सु हे दृव्वं २ १ अर्थात्‌ जो समान अथवा विभाव पयोयरूप परिणमें है, परिणमेगा, और परिण- म्या सो आकाश, जीव, पुहल, धर्म, अप, और काठ मेदरूपद्रव्य है । अथवा २ जो तीन काठमें उत्पाद, व्यय, पौन्य, सरूपसतकरिसदवित होवे उसे द्रव्य पहते हैं, तथा ३ जो शुणपर्यायसहित नादि सिद्ध होगे उसे प्व्य कहते हैं इस प्रकार दब्यके तीन वश कहे हैं. उनमेंसि पहला ठक्षण द्रव्य शब्दकी व्यु्पत्तिफी मुख्यता लेकर कहा है. इस उक्षणें त्मभावपर्याय और विमावपर्याय थे दो पद जायें हैं उ- नको स्पष्ट करनेंके छिये प्रथमद्दी पर्यायसामान्यका ठक्षण कहते हैं | थ द्ब्यमें अंशकल्पनाकों पर्याथ कहते हैं. उस बंद कल्पनाकों, दो भेद हैं एक देशांशकर्पना दूसरी गुर्णाशकर्पना | देशांशकर्पताकों द्रव्यपयोय कहते हैं यदि कोई यहां ऐसी शंका करे कि, जब शुणोंका 'सपुदाव है सोही दव्य है गुणोंसे मिन्न कोई दन्य पदार्थ नहीं है इस छिये द्रव्यपर्यायभी कोई पदार्थ नहीं हो सकता | ( समाधान ) यद्यपि गु्णेसि भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ नहीं है परत समसा गुणोंके पिण्डको देश कहते हैं और प्रलेकशुण समझ देशें व्यापक होता है इस कारण देश एक भंशों समलत गुणोका सहला है एसी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now